बालि-वध

युद्ध के लिए तैयार होकर सुग्रीव किष्किंधा नगरी पहुँचा और बालि को ललकारने लगा ।

सुग्रीव को देखकर बालि क्रोध से उसकी ओर झपटा ।

भयंकर मल्ल युद्ध होने लगा | बालि की मार खाकर सुग्रीव किसी तरह प्राण लेकर भागा | बालि ने कुछ दूर तक पीछा भी किया ।

परंतु जब वह ऋष्यमूक पर्वत के निकट पहुँच गया तब बालि लौट आया ।

राम धनुष पर बाण चढाए देखते ही रह गए ।

थोड़ी देर बाद राम भी सुग्रीब के पास पहुँच गए ।

राम को देखकर सुग्रीव को क्रोध आया | बह बोला - मुझको आपने बड़ा धोखा दिया ।

यदि बालि को नहीं मारना था, तो मुझे भेजा ही क्यों । देखते नहीं मेरी उसने नंस-नस तोड़ दी है ! सारे शरीर में भयंकर पीड़ा हो रही हे ।

यदि भाग न॑ आता तो वह मुझे मार ही डालता , राम ने अपनी कंठिनाई बताई, “तुम दोनों भाई शक्ल सूरत में इतने मिलते-जुलते हो कि मैं बालि को निश्चयपूर्वक नहीं पहचान सका ।

धोखे में यदि बाण तुम्हें लग जाता तो बड़ा अनर्थ होता ।

इतना कहकर राम ने सुग्रीब के शरीर पर हाथ फेरा ।उसकी सब पीड़ा जाती रही । उसकी देह वज़ की तरह कठोर हो गया 'राम ने सुग्रीव के गले में नांगपुष्पी की लता माला की तरह पहना दी और सुग्रीव से कहा कि अब फिर युद्ध के लिए जाओ । सुग्रीव बहुत डरा हुआ था ।

परंतु राम के अनुरोध करने पर वह चला गया और नगर के द्वार पर पहुँचकर सिंह की भाँति गरजने लगा | बालि अन्तःपुर में था । सुग्रीव की आवाज सुनकर वह पैर पटकता हुआ दौड़ा | बालि कौ स्त्री तारा बड़ी बुद्धिमती थी । उसने सोचा कि अभी-अभी सुग्रीव हारकर भागा है | इतनी जल्दी फिर कैसे ललकार रहा है ।

जरूर कोई न कोई बलवान योद्धा उसके पीछे है ।

इसलिए उसने बालि को जाने से रोका और कहा कि मैंने अंगद से सुना है कि अयोध्या के दो वीर राजकुमार इधर आए हैं ।

कोन जाने सुग्रीव से उनकी मित्रता हो गई हो ।

आप इस समय न जाएँ। मेरा मन कुछ ऐसा ही हो रहा है । गुप्तचरों से सही बात पता लगा लें | अगर मेरा अनुमान सही हो तो आप भी राम से मिल लें | वे वीर और धर्मात्मा हैं । फिर सुग्रीव भी आपका छोटा भाई ही तो है ।

उसे युवराज बनाकर अपना लें ।

बालि ने तारा को डाँट दिया और कहा, सुग्रीव भाई नहीं बैरी है | बैरी की ललकार मैं नहीं सह सकता | फिर तूने ही कहा है कि राम धर्मात्मा हैं। वे अकारण मुझे क्यों मारेंगे !

इतना वचन मैं तुझे भी देता हूँ कि मैं सुग्रीव को जान से नहीं मारूँगा ।

बस उसका अहंकार चूर करके छोड दूँगा ।

बालि ने दूसरी बार युद्ध में सुग्रीव को एक घूँसा मारा ।

उसके मूँह से रक्त निकलने लगा ।

वह सँँभलकर फिर युद्ध करने लगा | चपेटों की आवाज तड़ातड होने लगी।

धीरे-धीरे सुग्रीव

का बल क्षीण होने लगा | सुग्रीव को व्याकुल देखकर राम ने एक कठोर बाण बालि को लक्ष्य बनाकर छोड़ दिया | बालि का सीना फट गया और वह पृथ्वी पर गिर पड़ा ।

बालि के गिरते ही सुग्रीव के सभी साथी प्रकट हो गए। बालि ने देखा कि सामने धनुष चढ़ाए राम खड़े हैं। बालि ने उनसे प्रश्न किए,मैंने आपका क्‍या बिगाड़ा था ?

न तो मैंने आपका अपमान किया और न आपके राज्य पर चढ़ाई ही की ।

आपने यह अधर्म क्‍यों किया ? तो आप कपट वेशधारी छलिया लगते हैं | संसार को आप क्या जवाब देंगे ?

मुझसे लड़ना ही था तो सामने आकर लड़ते | रही सुग्रीव से मित्रता की बात, यदि मुझसे कहते तो मैं एक ही दिन में रावण और मंदोदरी समेत सीताजी को लाकर आपको दे देता ।

बालि पीड़ा से बेचैन था ।

अधिक न बोल सका ।

राम को बालि की बातों पर रोष-सा आया ।

वे बोले,बालि जिस धर्म की तुम दुहाई देते हो, मेरा काम उसी के अनुसार हुआ है ।

तुमने अपने छोटे भाई की स्त्री को उसके जीते-जी अपने घर में रख लिया है ।

उसकी पत्नी रुमा तुम्हारे लिए बेटी के समान है ।

तुम्हें मारकर मैंने धर्म की रक्षा की है और मित्र की सहायता की हे ।

तुम्हारे काम पशुओं जैसे थे । पशु को आड़ में से मारने में कोई दोष नहीं ।

बालि ने राम से हाथ जोड़कर क्षमा माँगी और कहा, “मुझे पर-स्त्री-हरण का दंड मिल गया ।

अपने लिए मुझे कोई चिन्ता नहीं । मेरी स्त्री तारा अनाथ हो गई है और मेरा इकलौता बेटा अंगद भी अनाथ हो गया। इन पर कृपा कीजिए ।

राम ने सुग्रीव के सामने ही बालि को आश्वासन दिया, तभी तारा भी रोती-रोती आई और पति से लिपटकर विलाप करने लगी।

बालि ने एक बार आँख खोली और सुग्रीव को इशारे से अपने पास बुलाया और धीरे से कहा- 'सुग्रीव, में सदा के लिए जा रहा हूँ ।

पिछली बातों को भूल जाओ । सब भाग्य का खेल था। किष्किंधा का राज मैं तुम्हें खुशी से देता हूँ ।

अंगद के अब तुम्हीं पिता हो । जानते हो वह कितने लाड्-प्यार से पला है।

तारा के सुख-सम्मान का ध्यान रखना ।

राम के काम में किसी प्रकार की ढील न करना ।”' इतना कहकर बालि ने अपने गले की माला उतारकर सुग्रीव के गले में डाल दी । अंगद को बुलाकर उससे कहा, “तुम किसी से न अधिक बैर करना, न अधिक प्रेम ; क्योंकि दोनों ही महान दोष हैं । बीच का रास्ता अच्छा होता है । इतना कहते-कहते बालि, की आँखें बंद हो गईं ।

भाई के बल पौरुष की याद कर सुग्रीव भी रोने लगा ।

राम ने तारा, सुग्रीव और अंगद - सबको समझा-बुझाकर धीरज बँधाया ।

सुग्रीव ने विधिपूर्वक बालि की अनत्येष्टि की । सुग्रीव सहित सब वात़र राम के पास लौटकर आ गए ।

राम-ने सुग्रीव से कहा-वानरराज अब नगर में जाकर अपवा राजतिलक कराओ और अंगद को अपना युवराज बनाओ ।

अब वर्षा ऋतु आ गई है। मैं प्रश्ऑवण पहाड़ पर रहँगा।

वर्षा समाप्त होते ही आ जाओ और सीता की खोज में लग जाओ ।

सुग्रीव बोला_ जैसी आपकी आज्ञा होगी वैसा निश्चय ही करूँगा ।

मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि वर्षा समाप्त होते ही वानर सीता की खोज में निकल जाएँगे ।