महेन्द्र पर्वत पर खड़े होकर हनुमान ने पहले सामने की ओर देखा |
अनंत सागर लहरा रहा था, ऊपर देखा तो अनंत आकाश था ।
पवन देवता का स्मरण करके उन्होंने अपनी लंबी भुजाएँ आगे फैलाकर छलाँग ली और पवन की गति से लंका की ओर उड़ चले |
हवा को चीरते हुए वे गरजते चले जाते थे। मैनाक पर्वत ने उनको विश्राम देना चाहा, परंतु वे रुके नहीं ।
कुछ ही दूर गए होंगे कि नागों की माता सुरसा उनके बुद्धि बल की परीक्षा लेने मुँह फाड़कर उनकी ओर दोड़ी ।
हनुमान ने बहुत विनय की, पर वह न मानी और अपना मुँह बढ़ाने लगी ।
हनुमान भी अपना शरीर बढ़ाते गए ।
जब उसका मुँह बहुत चौड़ा हो गया, तब हनुमान अपना शरीर छोटा करके उसके मुँह में घुसकर तुरंत निकल आए और बोले-'“माता !
अब तो ' मैं तुम्हारे मुँह में घुसकर बाहर आ गया हूँ। अब जाने की अनुमति दें ।
सुरसा की परीक्षा में हनुमान खरे उतरे ।
उसने हनुमान को आशीर्वाद देकर कहा कि तुम राम का काम अवश्य कर लाओगे ।
कुछ और आगे चलने पर उन्हें सिंहिका नाम की राक्षसी का सामना करना पड़ा ।
उसने जल में हनुमान की परछाई पकड़ ली । इससे उनकी गति रुक गई और वे खिंचकर सिंहिका के पास जा पहुँचे ।
हनुमान ने अपने नाखुनों से उसका पेट फाड़ डाला | वे फिर उड़े और समुद्र पारकर लंका जा पहुँचे ।
छोटा रूप बनाकर हनुमान एक पर्वत की चोटी पर चढ़ गए ।
वहाँ से सारी लंका दिखाई देती थी ।
उन्होंने देखा कि लंका के चारों ओर बड़ा मजबूत परकोटा है ।
परकोटे के चारों ओर खाई है और तरह-तरह के हथियार लिए सैनिक पहरा दे रहे हैं ।
उन्होंने यह भी देखा कि दुर्ग पर सैकड़ों शतध्नियाँ रखी हैं ।
सोने की लंका जमगमंगा रही है।
नगर की शोभा और सुरक्षा देखकर हनुमान चकित हो गए ।
उन्होंने रात के अँधेरे में लंका में प्रवेश करना ठीक समझा ।
विडाल का-सा छोटा रूप बनाकर हनुमान लुकते-छिपते लंका में घुस गए ।
उन्होंने देखा कि लंका में एक से एक उत्तम भवन हैं।
चाँदनी रात में वे एक अटरी से दूसरी अटारी पर आसानी से कूदने लगे |
सीता उनको कहीं दिखाई नहीं दीं । तब वे रावण के महल में घुस गए । उन्होंने देखा कि रावण एक सजे हुए पलंग पर सो रहा है ।
आस-पास अनेक सुंदरियाँ सो रही हैं । इधर-उधर मदिरा की प्यालियाँ पड़ी हैं। हनुमान ने बड़ी सावधानी से रावण का अन्त :पुर छान डाला, परंतु सीता उनको कहीं न मिली । मंदोदरी को देखकर उनको सीता का भ्रम भी हुआ, परंतु उन्होंने शीघ्र ही समझ लिया कि रावण के महल में सीता इस प्रकार निश्चित होकर नहीं सो सकतीं । उन्होंने एक-एक गली, एक-एक घर देख लिया, पर सीता कहीं न मिलीं ।
रावण के पुष्पक विमान को देखकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ | वह बड़ा अद्भुत था। उसके पंखों में मणियाँ जड़ी हुई थीं ।
अन्तःपुर से लगी हुई रावण की अशोक वाटिका थी | एक परकोटे के ऊपर से हनुमान ने उसे देख लिया और पहरेदारों की आँख बचाकर उसमें घुस गए |
अशोक वाटिका में तरह-तरह के सुंदर वृक्ष थे और बीच में एक ऊँचा भवन था ।
अशोक के पेड़ पर चढ़कर हनुमान उसे देखने लगे । उन्हें तरह-तरह की मुँहवाली अनेक राक्षसियाँ दिखाई दीं | फिर उन्होंने देखा कि उनके बीच में एक उदास स्त्री बैठी आँसू बहा रही हे ।
उनको लगा कि हो न हो यही सीता जी हैं । उन्होंने मन ही मन उन्हें प्रणाम किया और वे सोचने लगे किस प्रकार माता से बात हो । तरह-तरह की बातें सोचते बे पत्तों में छिपे बैठे रहे ।
अब रात का अंतिम पहर आ गया । नगरी में वेद पाठ होने लगे । रावण भी जगा और अपनी रानियों और दासियों को लेकर अशोक वाटिका में आ पहुंचा। हनुमान डाली पे चिपक गए
जिसस किसी का निगाह उन पर न पड़े । रावण को देखकर सीता थर-थर काँपने लगीं | रावण ने सीता को अनेक प्रकार के भय व लोभ दिखाए परंतु सीता ने रावण का तिरस्कार ही किया । सीता ने कहा-यदि, तुम मुझे स्वामी के पाप प्रहँत्ञाकर क्षमा नहीं माँगोगे तो वे तम्हारा - सर्वरनाश कर डालेंगे ।
सोने की लंका मिट्टटी भें शिल जाएगी ।'' क्रोध से आँखें लाल कर रावण बोला -''मन सोचने के लिए एक साल का समय दिया था ।
साल पूरा होने में दो महीने बचे हैं । इस बीच यदि तुम मरी बात नहीं मान लेती तो में अपनी चन्द्रहास तलवार से तुम्हारा गला काटकर फेंक दूँगा ।'” इतना कहकर रावण चला गया ।
रावण के चले जाने पर त्रिजटा नाम की एक बूढी राक्षसी ने दूसरी राक्षसियों से कहा, “पिछली रात मेंने एक सपना देखा है ।
सारी लंका समुद्र में डूब गई । विभीषण को छोड़कर सब दक्षिण दिशा को चले गए हैं। यह सपना अच्छा नहीं है | मेरी राय में सीताजी की सेवा करने में ही भलाई है ।
पेड़ पर बैठे-बैठे हनुमान सब कुछ देख-सुन रहे थे | सीता का दुःख देखकर वे दुःखी भी थे । उनको यह भी चिन्ता थी कि यदि सीता के सामने आकर संस्कृत में बोल उठें तो सीता उन्हें कहीं मायावी रावण ही न समझ ले | यंह ब्रिंचार कर उन्होंने पेड़ पर से ही राम वृत्तात सुनाना शुरू किया ।
उन्होंने राजा दशरथ का वैभव, राम-जन्म, राम-विवाह, राम-वनवास, हाँ सीता-हरण, सुग्रीव-मैत्री आदि का सब वृत्तांत संक्षेप में कह सुनाया | सीताजी आत्महत्या के विचार से उसी पेड़ के नीचे आ गई थीं, जिस पर हनुमान बैठे थे | उन्होंने ऊपर की ओर देखा ।
हनुमान को देखकर पहले तो वे घबराईं, पर उनकी बातों से और उनके व्यवहार से भरोसा हो चला कि वे राम के ही दूत हैं और पता लेने के लिए यहाँ आए हैं ।
अब हनुमान ने देखा कि सीता के मन में बार-बार संदेह उठ रहे हैं, तो उन्होंने पर्वत पर फेंके हुए आभूषणों की चर्चा की और अंत में राम की दी हुई मुद्रिका दी । अब सीता को पूरा भरोसा हो गया ।
हनुमान ने सीता का दुःख सुना और राम का विरह सुनाया | फिर उनको ढाढस बँधाते हुए कहा- समाचार पाते ही श्रीराम सेना लेकर आएँगे और रावण का वध करके आपको ले जाएँगे ।
सीताजी ने अपना चूड़ामणि उतारकर हनुमान को दिया और कहा, जब तुम इसे स्वामी को दिखाओगे तो वे समझ जाएँगे कि तुम मुझसे मिल चुके हो। वीरवर लक्ष्मण से मेरा शुभाशीर्वाद कहना | अब लौट जाओ तुम्हारी यात्रा मंगलमय हो ।