हनुमान का लंका से लौटना

सीताजी को प्रणाम करके हनुमान आरिष्ट पर्वत पर चढ़ गए । उन्होंने घोर सिंहनाद किया और समुद्र के उत्तरी तट की ओर उड़ चले ।

अंगद, जामबंत, नल, नील आदि उनके साथी बड़ी चिंता से हनुमान की बाट जोह रहे थे ।

हनुमान का गर्जन सुनकर वे चौंक पड़े ।

उन्हें लगा कि मानो दक्षिण का आकाश ही फट गया । हनुमान हवा को चीरते हुए चले आ रहे थे।

बानरों ने देखा कि महाध्वनि समीप आती जा रही है । वे ऊँचे-ऊँचे वृक्षों और पर्वत-शिखरों पर चढ़ गए ।

तभी उन्होंने देखा कि दक्षिण दिशा से एक तीक्र प्रकाश बढ़ता चला आ रहा है। कुतूहल से वे उसे देखने लगे ।

थोड़ी देर में साफ, हो गया कि दिशाओं को प्रकाशित करते हुए ओर श्रीराम तथा सुग्रीव की जय-जयकार करते हुए वीर हनुमान लोट रहे हैं | बंदर तालियाँ पीट -पीटकर नाचने लगे । वे बार-बार अपनी पूँछ को चूमते थे। कभी पेड़ पर चढ़ जाते ओर फिर उतर आते | हनुमान के आते ही सबने उन्हें घेर लिया । अंगद और जामवंत ने उन्हें हृदय से लगा लिया । कुछ बंदरों ने पेड़ों से फूल तोड़कर उन पर बरसाए । फिर एक जगह बेठकर हनुमान ने लंका के सब समाचार सुनाए ।

अंगद ने कहा, ““चलो, अब शीघ्रता करो ।

बाकी हाल रास्ते में सुनते चलेंगे । सुग्रीव को शीघ्र समाचार देना है ।'' वे किष्किंधा की ओर चल पड़े। मार्ग में हनुमान ने बताया कि रावण ऐसा-वैसा बली नहीं है ।

उसको पराजित करने के लिए बुद्धि और बल दोनों की आवश्यकता है । हम लोगों को प्राणों की बाजी लगानी होगी ।

चलते-चलते बे सुग्रीव के मधुबन नामक बाग में पहुँचे ।

सुग्रीव का मामा दधिमुख उसकी रखवाली करता था । यह बाग सुग्रीव को बहुत प्यारा था ।

साथियों को भूखा और थका देखकर अंगद ने आज्ञा दे दी कि भरपेट फल खाओ और मधु पियो । बंदरों ने मममाने फल खाए और भालुओं ने मधु पिया । रखवालों को उन्होंने मार-पीटकर भगा दिया ।

दधिमुख रोता-चिल्लाक्न सुग्रीध के पास पहुँचा । उसने अंगद की शिकायत करते हुए कहा कि दक्षिण से आए हुएं सब बानरों मे मधुबन छजाडु दिया है | सुग्रीव समझ गए कि थे राम का काम कर सीताजी का समाचार जरूर ले आए हैं, नहीं तो मधुबन उजाड़ने की तो बात ही क्‍या इधर आने की भी हिम्मत न करते । उन्होंने दधिमुख से कहा, ''वानरों को शीघ्र मेरे पास प्रस्रवण पर्वत पर भेजो ।'” दधिमुख द्वारा सुग्रीव की आज्ञा पाते ही बानर चल पड़े ।

प्रश्रवण पर्वत पर पहुँचकर सब॑ बानरों ने सुग्रीव को प्रणांम किया । अंगद और जामवंत ने सीताजी के मिलने की सब कहानी सुग्रीब को सुनाई । सुग्रीव ने हनुमान को हृदय से लगाया । वानरों को साथ लेकर सुग्रीव राम के पास गए और कहा कि हनुमान ने हम सबकी लाज रख ली । राम ने खड़े होकर हनुमान को हृदय से लगाया और लंका के समाचार पूछे । हनुमान ने

दुःखी सीता को विपदा का सारा हाल कहा और सीता का संदेश भी कहा--“'यदि दो महीने के भीतर आर्य यहाँ नहीं आ जाते तो दुष्ट रावण मुझे पार डालेगा | वीरबर लक्ष्मण को भी

उन्होंने शुभाशीर्वाद भेजे हैं ।'” सीताजी का दिया हुआ चुड़ामणि भी हनुमान ने राम को दिया।

जूडामणि देखकर रामः रो पड़े और सुग्रीव से बोले--'“यह चूड़ामणि जानकी को विवाह के अवसर पर अपने पिता से मिला था। वे इसे कभी अलग नहीं करती थीं ।'” सीता के बारे में श्रीराम तरह-तरह के सवाल करने लगे । वह केसी हें ?

राक्षसियों में केसे रहती हें ?

उन्होंने तुम्हें कैसे पहचाना ? उन्होंने क्या कहलाया है ?

हनुमान ने इन प्रश्नों का यंथोचित उत्तर दिया और शोक छोड़कर युद्ध के लिए राम को उत्साहित किया।

वे बोले, “नाथ ! अब शोक न करें। शोक से बल क्षीण होता है| युद्ध की तैयारी करें और सीता को विपत्ति से छुड़ाएं ।

. श्रीराम ने सुग्रीव से कहा, “मित्र ! अब देर न करो | अपनी सेना को रण यात्रा की आज्ञा दो ।