युद्ध की तैयारियाँ और अंगद का लंका जाना

रावण ने जब यह सुना की समुद्र पर पुल बँध गया है और राम की सेना पार कर लंका में पहँच चुकी है, तो उसको बड़ा विस्मय और भय हुआ ।

उसने कभी यह सोचा ही न था कि समुद्र पर भी पुल बन सकता है ।

अब उसने राम की सेना का बल जानना चाहा । शुक और सारण नाम के चतुर मंत्रियों को बुलाकर उसने कहा "राम की सेना में जाकर गुप्त रूप से बातरों के बल का पता लगाओ ।

शुक और सारण बड़ी माया जानते थे । बंदर बनकर वे राम की सेना में घुस गए और सावधानी से सब जगह देखने लगे, हर बात का पता लगाने लगे।

अति उतंग गिरि पादप लीलहीिं लेहिं उठाडइ।
आनि देहिं नल नीलहि रचहिं ते सेतु बनाइ ॥

उन्होंने देखा कि राम की सेना ने सारा सुबेल पर्वत ढँक लिया ।

उसके अलावा सेना से चली ही आ रही है ।

शुक सारण आँख बचाकर देख रहे थे जिससे उन्हें कोई पहचान न पाए ।

पर विभीषण को वे धोखा न दे सके । विभीषण ने ताड़ लिया कि वे कौन हैं । उन्हें पकड़वाकर वे राम के पास गए । पूछने पर उन्होंने राम को बता दिया कि हम रावण के गुप्तचर हैं । शुक और सारण हमारा नाम है । हम वानर सेना का भेद लेने आए हैं ।

राम मुस्करा कर बोले, भेद ले चुके या अभी और कुछ लेना है ! कुछ पूछना चाहो, तो पूछ भी लो और खुद देखना चाहो तो विभीषण तुम्हें दिखा भी देंगे ।

ज॑ब लंका लौटकर जाओ तो अपने स्वामी से कहना कि “जिस बल पर सीता को चोरी से लें गंया है, उस बल को अब दिखाए ।

कल से मेरे बाण लंका पर बरसने लगेंगे ।

विभीषण से उन्होंने कहा इन्हें छोड़ दो और जाने दो, इन बिचारों का कया दोष ! राम की जय-जयकार करते हुए शुक-सारण लंका लौट गए ।

लंका पहुँचकर शुक और सारण सीधे रावण के पास गए और उन्होंने राम के बल तथा उनके कोमल स्वभाव की बड़ाई की ।

उनकी बात सुनी-अनसुनी करके रावण उन्हें सबसे ऊँची अँटारी पर ले गया और बोला राम की सेना के प्रमुख वीर मुझे दिखाओ ।

सारण ने कहा कि देखिए जो इस ओर मुँह किए बार-बार गरज रहा है और जिसकी गरज से लंका काँप रही है, वह सुग्रीव का सेनापति नील है और जो तिरछी आँखें किए बार-बार जम्हाई ले रहा है वह पहाड जैसे शरीरवाला बालि का पुत्र अंगद है, लग रहा है मानो वह युद्ध के लिए ललकार रहा है ।

अंगद के पीछे नल है जिसने समुद्र पर पुल बना दिया है ।

वह देखिए रीछों का झुंड, उसके आगे बूढे जामबंत खड़े हैं और उस बंदर को आप पहचानते ही होंगे जो मस्त हाथी को चाल से चल रहा है, लंका जलानेवाला वह क्केसरी-पुत्र हनुमान ।

उसके समीप ही महाधनुर्धर राम हैं जिनकी पत्नी को आप ले आए हैं । उनकी बाईं ओर मंत्रियों सहित विभीषण बेठे हें । राम ने उनको लंका का राजा बना दिया है ।

राम और विभीषण के बीच में वानरराज सुग्रीव बेठे हैं । सेना के वानरों की गिनती नहीं की जा सकती । इस सेना को जीतना बड़ा कठिन हे । यों अकेले राम ही लंका के लिए काफी हें ।

मेरी राय यह है कि सीता को लौटाकर राम से मित्रता कर लें । शुक ने भी ऐसी ही बातें कहीं । यह सुनते ही रावण लाल-लाल आँखें करके बोला - “'दुष्टो ! तुम्हें इतना भी नहीं मालूम कि अपने राजा के सामने शत्रु की बड़ाई नहीं करनी चाहिए ।

मेरे सामने से हट जाओ ।

इतना कहकर रावण अंतःपुर में चला गया । वहाँ भी उसको यही राय मिली कि राम से सुलह करना ही ठीक होगा । परंतु रावण ने जो मन में ठान लिया था, उससे डिगा नहीं । उसने सेना को तैयार होने के आदेश दिए ।

इधर राम ने भी अपनी सेना को चार भागों में बाँट दिया और यह बता दिया कि कौन-सा दल लंका के किस द्वार पर आक्रमण करेगा ।

उन्होंने यह भी कहा कि लक्ष्मण और में तथा विभीषण ओर उनके मंत्री मानव रूप में रहेंगे। शेष सब वानर के बाने में ही यद्ध करेंगे । सुबेल पर्वत पर चढ़कर राम उस रात लंका का निरीक्षण करते रहे । सबेरा होते ही उन्होंने लंका को चारों ओर से घेरने का आदेश दिया ।

बंदरों के सिंहनाद से दिशाएँ गँज गईं ।

राजनीति पर विचार करके राम ने अंगद को बुलाकर कहा कि युद्ध शुरू करने के पहले सुलह का अंतिम प्रयास कर लिया जाए ।

तुम मेरे दूत बनकर लंका जाओ । अगर सीता को लौटाने को रावण तैयार न हो तो उससे कह देना कि हथियार उठाने से पहले वह अपना श्राद्ध भी कर ले, क्‍योंकि फिर उसके कुल में कोई न बचेगा ।

अंगद उड़कर लंका पहुँचे और निडर होकर रावण की सभा में चले गए ।

रावण से उन्होंने कहा - में बालि का पुत्र अंगद हूँ। आप में और मेरे पिता में मित्रता थी । इसी नाते आपके । पास आया हूँ।

में आपको अंतिम चेतावनी देना चाहता हूँ । जानकी जी को लौटा दें, नहीं तो । लंका में कोई जीवित न बचेगा । रावण बोला-अंगद तुमको लज्जा आनी चाहिए ।

अपने पिता के शत्रु की तुम दासता कर रहे हो ।

मेरे मित्र के तुम पुत्र हो, तो आओ मेरी ओर आकर अपने पिता की मत्यु का बदला लो ।

इतना सुनते ही अंगद को बहुत क्रोध आया और उन्होंने रावण से बहुत बुरा-भला कहा ।

रावण ने आज्ञा दी - राक्षस वीरो ! इस धृष्ट वानर को पकड़कर मार डालो ।

चार-पाँच राक्षस अंगद की ओर झपटे । अंगद ने उनको पकड़कर मसल दिया ।

इसके बाद वे रावण के महल पर कूदकर चढ़ गए ।

महल के कंगूरों को ढाहकर वह आकाश मार्ग से ही राम के पास पहुँच गए ।

अंगद के पहुँचते ही राम-दल ने लंका के चारों द्वारों पर चढ़ाई कर दी ।