लंका के चारों द्वारों पर वानर सेना ने आक्रमण कर दिया था ।
राम-लक्ष्मण, सुग्रीव, जामवंत आर विभीषण के नेतृत्व में वानर सेना ने उत्तर से आक्रमण किया ।
रावण की आज्ञा से उनकी चतरंगिणी सेना चारों फाटकों से निकले पड़ी और राक्षसेन्द्र रावण की जय बोलती हुई वानर सेना पर टूट पड़ी ।
बंदरों ने उस पर पेड़ और पत्थर बरसाने शुरू किए ।
दुर्ग की खाई उनसे पट गई । बंदर किलकारी मारते हुए कोट पर चढ़ गए और राक्षसों को पकड़-पकड़ कर नीचे फेंकने लगे ।
दाँत, नख , धप्पड़ और घूँसा उनके हथियार थे ।
राक्षस उन्हें शूल और तलवारों से काट रहे थे ।
हाथियों के चिंघाड़ने, घोड़ों के हिनहिनाने और रथों के परधघराहट का कोलाहल चारों ओर भर गया। दोनों ओर के बहुत-से वीर मारे गए ।
श्रीराम के बाणों के आगे जो भी आया मारा गया । लड़ते-लड़ते शाम हो गई ।
अब मेघनाद ने अपनी ओर का मोर्चा सँभाला ।
युवराज अंगद " उसके घोड़ों और सारथी को मार डाला । तब वह छिपकर युद्ध करने लगा । माया के कारण किसी को दिखाई नहीं देता था ।
उसने सारी वानर सेना को अपने पैने बाणों से छेद डाला और नागबाणों से राम-लक्ष्मण को मूर्च्छित कर दिया ।
विजय-घोष करता हुआ वह लंका लोट गया । उसने पिता को बताया कि राम-लक्ष्मण मारे गए ।
राम के मारे जाने का समाचार सुनकर रावण बड़ा खुश हुआ ।
मेघनाद को गल रे वह उसकी वीरता की प्रशंसा करने लगा ।
अशोक वाटिका से राक्षसों को बुलाकर रावण ने कहा कि पुष्पक विमान में सीता को ले जाकर दिखा दो कि राम और लक्ष्मण मारे गए ।
वे अपनी आँखों से यह दृश्य देख लें। राक्षसियों ने रावण की आज्ञा का पालन किया । राम-लक्ष्मण का पड़ा देखकर सीता रोने लगीं ।
तब त्रिजटा ने कहा, “देखो, इनके मुख पर मृत्यु का कोई चिह्न नहीं है ।
वे केवल मूच्छित हैं। थोड़ी देर में उठ बैठेंगे ।
विमान अशोक वाटिका को लोट गया ।
इधर राम-लक्ष्मण को अचेत देखकर सुग्रीव रोने लगे ।
विभीषण ने उन्हें धैर्य बांधते हुए कहा--'यह समय रोने का नहीं है ।
अपनी सेना सँभालिए । मैं राम-लक्ष्मण की चिकित्सा का प्रबंध करता हूँ ।
थोडी देर में राम की मूर्च्छा टूटी ।
उन्होंने लक्ष्मण को अचेत और खून से लथपथ देखा ।
वे तरह-तरह से विलाप करने लगे-'मैं माता सुमित्रा को अब कैसे मुँह दिखाऊंगा ।
हाय, में विभीषण को लंका का राज न दे सका । सुग्रीव तुम सेना लेकर किष्किन्धा लौट जाओ ।
में भी यहीं प्राण दे दूँगा । तभी विभीषण गदा लिए आते दिखाई दिए ।
वानरों,न समझा कि मेघनाथ फिर आ गया । उनमें भगदड़ मच गई ।
जामवंत ने सबको बताया कि ये मेघनाद नहीं महात्मा विभीषण हैं।
श्रीराम को बिलाप करते देख विभीषण ने समझाया वीर पुरुष रणभूमि में रोते नहीं ।
शोक से उत्साह का नाश होता है और सब काम बिगड़ जाते हैं ।
आप तो वीर शिरोमणि हैं और हम सबको रास्ता दिखाने वाले हैं ।
लक्ष्मण चिकित्सा से ठीक हो जाएँगे । वे केवल मर्च्छित हैं।
वेद्याज सुषेण ने कहा कि अगर संजीबनी और बिशल्यकरणी औषधियाँ मिल जाएँ तो राम-लक्ष्मण अभी स्वस्थ हो जाएँगे ।
ये बातें हो ही रही थीं कि पक्षियों के राजा गरुड़ आ गए।
उनके आते ही राम-लक्ष्मण नागपाश से छूट गए । उनके घाव भर गए और वे पूरी तरह स्वस्थ हो गए ।
यह देखकर वानर सेना हर्ष-ध्वनि करने लगी।
उधर रावण को जब यह समाचार मिला तो उसने एक-एक करके कई राक्षस वीर लड़ने के लिए भेजे | पहले धूप्राक्ष आया ।
उसको हनुमान ने मार डाला । फिर बद्जद॑ष्ट् आया, वह राम-लक्ष्मण से लड़ने लगा ।
अंगद ने बढ़कर तलवार से उसका सिर काट डाला । उसके मारे जाने पर रावण ने अकंपन को भेजा ।
उसके प्रहार से वानर सेना भागने लगी ।
तब वीर हनुमान आगे आ गए । राक्षस के तीखे बाणों की परवाह न करके उन्होंने एक बड़ा-सा पेड़ उस पर फेंका । अकंपन कुचलकर मर गया ।
तब रावण का सेनापति प्रहस्त लड़ने के लिए आया ।
नील ने उससे युद्ध किया और उसका धनुष तोड़ डाला । तब प्रहस्त ने नील पर मूसल से प्रहार किया ।
उसकी चोट से नील की आँखों के आगे अँधेरा छा गया फिर संभल कर उन्होंने एक बड़ी भारी शिला से प्रहस्त को कुचल कर मार डाला ।
इन योद्धाओं के मारे जाने पर रावण स्वयं युद्ध के लिए चल पड़ा ।
बहुत-से राक्षस वीर मेघनाद, अतिकाय, महोदर, नरांतक_ आदि उसके साथ थे । रावण ने पहला बार सुग्रीव पर किया और उनको अचेत कर दिया ।
फिर उसने सब प्रमुख वानर वीरों को घायल कर दिया। तब लक्ष्मण ने युद्ध करने की आज्ञा माँगी ।
हनुमान आदि वीर वानरों के साथ श्रीराम ने लक्ष्मण को युद्ध के लिए भेजा । पहले हनुमान से रावण की भिड़ंत हुई ।
दोनों ने एक-दूसरे को मुक्का मारा ।
मुक्के की चोट से रावण लडखड़ा गया और हनुमान के बल की प्रशंसा करने लगा ।
अब लक्ष्मण और रावण का बाण-युद्ध होने लगा । पहले रावण ने बाणों की मार से लक्ष्मण को विचलित कर दिया ।
लक्ष्मण ने रोष करके रावण का धनुष काट दिया और बाणों से उसका शरीर छेद डाला । उसे लगा कि लक्ष्मण प्राण ही ले लेंगे ।
तब रावण ने उन पर ब्रह्मशक्ति चला दी । शक्ति के लगते ही लक्ष्मण गिर पड़े । रावण उनके पास चला गया और उन्हें उठाकर लंका ले जाने की कोशिश करने लगा ।
पर किसी तरह उठा न सका । यह देखकर हनुमान दोड़े आए । 'बण को एक घूँसा मारा जिससे वह मूर्छित हो गया ।
हनुमान ने लक्ष्मण को उठाकर राम के पास पहुँचा दिया । राम के पास पहुँचते ही वे स्वस्थ होकर उठ बेटे । इधर रावण की मूर्च्छा टूटी और फिर बाणों की वर्षा करने लगा । अब राम ने अपना धनुष उठाया और हनुमान के कंधे पर बैठकर वे युद्ध करने लगे ।
राम ने अपने पैने बाणों से पहले रावण का रथ्र॒ नष्ट कर दिया ।
फिर उसकी छाती में अनंक बाण मारे । रावण का मुकुट भी पृथ्वी पर गिर पड़ा । तब श्रीराम बोले, रावण ! जाओ ! आज मैं तुम्हें छोड़ता हूँ, अस्त्र-शस्त्र से सज्जित होकर और नए रथ में बैठकर फिर आना ।
लज्जित होकर रावण लौट गया । इस प्रकार राम-रावण संग्राम की पहली मुठभेड़ समाप्त हुई ।