कुंभकर्ण के वध से रावण का दिल टूट गया ।
वह शोक से मूर्च्छित होकर गिर पड़ा और तरह-तरह से विलाप करने लगा,आज मेरी दाहिनी भुजा कट गई ।
देवताओं ! आज तुम्हारा डर दूर हो गया। भाई ! तुम्हारे मरने से लंका अनाथ हो गई ।
संकट में अब मेरा कोई सहारा नहीं ।
त्रिलोकी विजयी राबण को विलाप करते देख त्रिशिरा, देवांतक, नरांतक आदि उसके पुत्र आ गए और रावण को ढाढ्स बँधाने लगे ।
वे बोले, आज्ञा दें तो हम अभी जाकर राम-लक्ष्मण को पकड़कर आपके सामने ले आएँ ।
रावण ने उन्हें छाती से लगाकर आशीर्वाद् दिया और अपने भाई महापाश्व और महोदर के साथ अपने पुत्रों को युद्ध के लिए भेजा । अंगद नरांतक - से भिड़ गया ।
नरांतक ने अंगद कौ छाती पर भाला मारा ।
भाला टूट गया । दोनों अब मल्लयुद्ध करने लगे । नरांतक के मुक्के से अंगद को मूर्च्छा आ गई ।
फिर सचेत होकर उन्होंने नरांतक के हृदय पर ऐसा मुक्का मारा कि वह सदा के लिए सो गया ।
अब देवांतक, त्रिशिरग आदि सब राक्षस अंगद पर एक साथ टूट पड़े ।
अंगद को घिरा हुआ देखकर हनुमान और नील दौड़े आए ।
हनुमान ने देवांतक को मार डाला और नील ने महोदर को । फिर हनुमान ने त्रिशिरा का भी काम तमाम कर दिया । अब महापार्श्व बच रहा । वानर ऋषभ उससे जाकर भिड़ गया और थोड़ी देर में ही मुक्के से उसे मार डाला ।
अब अतिकाय नाम का राक्षस युद्ध के लिए आया। उसका शरीर कुंभकर्ण के समान विशाल था ब्रह्मा को प्रसन्न कर उससे कई वरदान ले लिए थे ।
वानर सेना ने भी समझा कि मरा हुआ कुभकर्ण फिर लड़ने आ गया ।
वे डर के मारे भागने लगे । अतिकाय बिना बाण छोडे रथ दोड़ाता हुआ श्रीराम के पास पहुँचा और बोला, “हिम्मत हो तो मुझसे युद्ध करो, नहीं तो चुपचाप लौट जाओ ।
मैं लक्ष्मण से नहीं लड़ूँगा । वह अभी बालक है ।
लक्ष्मण ने उसे ललकारा, पहले बालक से ही निपट लो । लक्ष्मण उस पर बाण चलाने लगे परंतु अतिकाव पर उनका कोई असर नहीं हुआ ।
उसके दिव्य कवच से टकराकर वे व्यर्थ हो जाते ।
तब लक्ष्मण ने उसके घोड़ों और सारथी को मार डाला और रथ को तोड़ दिया ।
अपने तीखे बाण से अतिकाय ने लक्ष्मण का क्षत-विक्षत कर दिया ।
स्वस्थ होने पर लक्ष्मण ने अनेक अनेक बाण छोड़े पर अतिकाय का बाल बांका न हुआ ।
तब लक्ष्मण ने कोई चारा न देख अतिकाय पर ब्रह्मास्त्र चला दिया ।
अतिकाय का सिर कटकर अलग जा गिरा ।
राक्षस सेना भागकर लका म॑ घुस गई ।
इघर राम दल मेँ लक्ष्मण की जय-जयकार होने लगी ।
अपने वीर पुत्र और बंधु-बांधवों को मारे जाने से रावण बिल्कुल हताश हो गया ।
वह यह भी सोचने लगा कि विभीषण का बात मान लेता तो यह दिन नहीं देखना पड़ता ।
उसे न अब राज्य को कामना थी ओर न सीता के प्रति आसक्ति रावण का ज्येष्ठ पुत्र मेघनाद पिता के पास पहुँचा हुँचा ।
रावण को तरह-तरह से समझाकर उसने कहा, “मेरे रहते आप क्यों चिन्ता करते हैं ।
दो घड़ी के भीतर ही मैं राम-लक्ष्मण को मारकर आपको सुखी बनाता हूँ” रावण की हिम्मत बँधी ।
उसने राक्षसों को आदंश दिया-- नगर द्वारों की सावघानी से रक्षा की जाए । अशोक वाटिका का पहरा उसने और भी कड़ा कर दिया ।
दिव्य अस्त्र-शस्त्र लेकर मेघनाद युद्ध के लिए चल पडा ।
मेघनाद का बल पाकर राक्षस सेना बड़े उत्साह से बंदरों पर टूट पडी ।
मेघनाद ने बाण वर्षा कर प्रमुख वानरों को घायल कर दिया । जो पत्थर और पेड उसके ऊपर वरसाए जाते, उन्हें वह बीच में ही काट देता ।
उसने बढ़कर राम-लक्ष्मण पर बाण वर्षा आरभ कर दी ।
उसने एसी माया फेलाई कि कोई उसे देख नहों सकता था। राम बाण चलाते तो कहा ?
राम-लक्ष्मण को ब्रह्मास्त्र से मूर्च्छित कर मेघनाद लकापुरी लोट गया ।
राम-लक्ष्मण को मूच्छित देखकर वानर वीर घबराए । विभीषण ने उनको समझाते हुए कहा के ब्रह्मास्त्र का सम्मान करने के लिए वे मूर्च्छित हो गए हैं। ठीक हो जाएँगे । जामवंत के पास जब विभीषण मशाल लेकर कुशल पूछने पहुचे, तो जामवंत ने कहा - पहले यह बताओ हनुमान तो जीवित हैं ?
अगर वे जीवित हैं तो वे मरे हुओं को भी जीवित करलेंगे ।
यह सुनकर हनुमान ने उनके चरणों को प्रणाम किया ।
जामवत ने कहा, “पवनपुत्र ! तुम हिमालय पर जाओ और कैलाश शिखर से मृत सर्जावनी, विशल्यकरणी, सुवर्णकरणी और संघानी औषधियाँ ले आओ ।इनकी चमक से ही उस इन्हें पहचान लोगे। तब राम-लक्ष्मण और सब वानर स्वस्थ हो जाएँगे ।
हदुसान तत्काल एक ऊँचे पर्वत पर चढ़ गए ।
उन्होंने अपनी पूंछ ऊपर उठाई, पीठ झुंकाई, कान सिकोड़ो और भुजाओं को आगे की ओर तथा जंघाओं को पीछे की ओर फैलायो और वे आकाश में उड़ चले ।
बात की बात में वे हिमालय के शिखर पर जा पहुँचे ।
उन्हें वहाँ अनेक औषधियाँ चमकती हुई दिखाई दीं। जब वे बताई हुई औषधियाँ को न पहचान सके, तो उन्होंने पर्वत शिखर को हो उठा लिया और पक्षिराज गंरुड की गति से वे लंका आ पहुँचे ।
औषधियों को सुगंध से ही राम-लक्ष्मण स्वस्थ हो गए वानर वीरों के घाव पुर गए और बे ऐसे उठ बैठे मानो सोकर उठे हों। बानर सेना नए उत्साह से भर गई।
सुग्रीथ कौ आज्ञा से वानर सेना ने रात में ही जलती हुई मशालें लेकर लंका पर धावा बोल दिया, द्वार-रक्षक प्राण लेकर भागे । बंदरों ने लंका में घुसकर रावण के हाथीखानों और घुड्सवारों में आग लगा दी। अन्न के भंडारों में भी आग लगा दी घर-घर में आग लगा दी । आग की लपटें आकाश चूमने लगीं ।
उनका प्रतिबिम्ब जो समुद्र में पड़ा तो वह भी लाल हो गया ।
वानर सेना के सामने जो भी पड़ा, मारा गया। कंपन, प्रजंघ, यूपाक्ष और कुंभ आदि राक्ष॑स भी मारे गए । कुंभ को मरा देखकर उसका भाई निकुंभ सुग्रीव पर टूट पड़ा । तभी हनुमान आ गए | दोनों में भयंकर युद्ध हुआ ।
अंत में हनुमान ने गर्दन मरोडुकर उसे भी मार डाला । मार-काट मचाकर वानर वीर अपने पड़ाब को लौट आए ।
अगले दिन रावण ने खर के पुत्र मकराक्ष को युद्ध के लिए भेजा। श्रीराम और मकराक्ष का बाण युद्ध होने लगा । वे एक-दूसरे के बाण काटकर अनायास ही गिरा देते ।
अवसर पाकर श्रीराम ने मकराक्ष के घनुष को काट दिया और उसके रथ को नष्ट कर दिया ।
तब वह शूल हाथ में लेकर दौड़ा । राम ने उसे भी बाणों से काट डाला ।
अब वह निःशस्त्र था ।
घूँसा तान कर राम की ओर दौड़ा ।
राम ने उसकी छाती में अग्नि बाण मारा ।
लोहे के किवाड की भाँति उसका वक्ष फट गया ।
बची-खुची राक्षस सेना लंका में घुस गई ।
अब रावण के पास एक ही वीर लंका में बचा था, वह था इन्द्र को जीतने वाल मेघनाद ।
उसने मेघनाद को बुलाया और उसकी बड़ाई करके युद्ध के लिए भेजा ।
रणक्षेत्र में न जाकर मेघनाद अपनी यज्ञशाला में गया और होम करने लगा ।
देव-दानवों को प्रसन्न कर रथ में बैठ वह युद्धभूमि में आ गया ।
उस समय उसके मुख पर सूर्य के समान तेज था ।
मंत्र शक्ति से वह अदृश्य होकर बाण बरसा रहा था ।
राम-लक्ष्मण का एक भी बाण उस तक न पहुँचता था । उसके पास से कोई आवाज भी न आती थी इसलिए शब्द-बेधी बाण भी उसका कुछ न बिगाड़ सकते थे ।
राम-लक्ष्मण घायल हो गए और वानर वीर हताश ।
श्रीराम के रोक देने से लक्ष्मण ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग नहीं किया ।
लंका के दुर्ग में घुसकर मेघनाद पश्चिमी द्वार से फिर निकल आया ।
अबकी बार उसके रथ में सीताजी बेठी दिखाई दीं ।
मेघनाद ने म्यान से तलवार निकाली और रथ में बैठी सीता को बाल पकड़कर नीचे घसीट लिया और तलवार से उनका सिर काट दिया ।
तब उसने हनुमान से कहा, “अपनी आँखों से देख लो, जिस सीता के लिए तुम लड़ रहे हो, उसको मैंने मार दिया । सीता वध का समाचार पाकर श्रीराम और लक्ष्मण भी रोने लगे। इतने में महात्मा विभीषण पहुँच गए ।
उन्हें मेघनाद की माया का पता था । उन्होंने कहा,रघुनन्दन ! जिस सीता का वध मेघनाद ने किया है वह माया की थीं ।
हमारी देवी सीता न थीं ।
उन्होंने यह भी बताया कि इस समय मेघनाद निकुंझिला देवी के मंदिर में यज्ञ कर रहा है।
यदि उसका अनुष्ठान पूरा हो गया तो वह किसी के मारे न मरेगा । हे महाबाहु !
मेरे साथ लक्ष्मण को तत्काल भेजिए जिससे हम उस यज्ञ से उठाकर युद्ध के लिए विवश कर दें ।
राम की आज्ञा पाकर लक्ष्मण युद्ध के लिए तैयार हुए ।
उन्होंने राम के चरण छूकर कहा- “आज में आपकी कृपा से मेघनाद को अवश्य.मार डालूँगा । कोई भी उसे न बचा सकेगा ।
वानर सेना के साथ विभीषण के पीछे लक्ष्मण चल दिए । वानर और भालू राक्षस सेना पर 'टूट पड़ी । लंकापुरी में हाहाकार मच गया ।
निकुभिला के सामने मेघनाद से तब न रहा गया ।
वह यज्ञ छोड़कर युद्ध के लिए चल दिया । लक्ष्मण विभीषण के बताए हुए स्थान पर बरगद के नीचे मेघनाद के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे ।
इतने में मेघनाद का रथ वहाँ आ गया । विभीषण को देखकर वह समझ गया कि लक्ष्मण को सारा भेद उन्हीं ने बताया है । वह विभीषण को बुरा-भला कहकर लज्जित करने लगा, “आप मेरे पिता के सगे भाई हैं । लंका में ही जन्म और बड़े हुए । आपको समझना चाहिए था कि अपने अपने ही होते हैं ।
दूसरे श्रेष्ठ होन पर भी अपने नहीं हो सकते ।
आप देश-द्रोही हैं। आपके अलाबा लंका का भेद जाननेवाला वहाँ कौन था? आप ही लक्ष्मण को यहाँ ले आए हैं ।
लक्ष्मण और मेघनाद में युद्ध छिड़ गया । उनकी बाण वर्षा देखकर रोएँ खड़े हो जाते थे ।
विभीषण बराबर लक्ष्मण का उत्साह बढा रहे थे ।
वानरों को भी उन्होंने बढ़ावा दिया और कहा, “मैं ही इसे मारता पर मेरा भतीजा है । लक्ष्मण के हाथों आज अवश्य यह मरेगा । तुम राक्षसी सेना पर टूट पड़ो ।
लक्ष्मण ने मेघनाद का कवच काट दिया और मेघनाद ने लक्ष्मण का ।
तब लक्ष्मण ने उसके सारथी को मार डाला । मेघनाद रथ भी हाँकता और बाण भी छोड्ता ।
तब बंदर मेघनाद के रथ के घोड़ों पर चढ़ गए और घूँसों की मार से उन्हें गिरा दिया ।
अब वह लंका से दूसरा रथ लाकर युद्ध करने लगा । लक्ष्मण ने मेघनाद के धनुष को काट दिया ।
उसने दूसरा धनुष उठाया, लक्ष्मण ने उसे भी काट दिया । तब वह तीसरा धनुष लेकर युद्ध करने लगा ।
वह अब हिम्मत हार रहा था ।
इतने में विभीषण ने अपनी गदा से मेघनाद के रथ के चारों घोड़ों को मार दिया ।
मेघनाद ने रथ से कूदकर विभीषण पर शक्ति प्रहार किया ।
लक्ष्मण ने उसे बीच में ही काट दिया । अब लक्ष्मण ने विश्वामित्र के दिए ऐन्द्रास्त्र को धनुष पर रखा और कान तक खींचकर उसे छोड़ दिया ।
मेघनाद का सिर कटकर पृथ्वी पर गिर पड़ा ।
राक्षस सेना भाग खड़ी हुई । लक्ष्मण को आगे कर विभीषण श्रीराम के पास पहुँचे और लक्ष्मण के पराक्रम की बात उन्हें बताई ।
श्रीराम ने लक्ष्मण को गले से लगा लिया और उनकी प्रशंसा की ।
श्रीराम बोले, 'अब हमारी विजय निश्चित समझो ।
लंका का असली योद्धा मारा गया । वानर सेना में लक्ष्मण की जय-जयकार होने लगी ।