राम-रावण युद्ध

मेघनाद के मरतें ही रावण की कमर टूट गई ।

कुछ समय तक तो वह शोक में डूबा रहा फिर वह क्रोध से लाल हो गया ।

उसकी शक्ल बडी डरावनी, हो गई ।

कोई उसके मुँह की ओर आँख उठाकर न देख पाता था ।

उसने बची हुई सारी राक्षस सेना को युद्ध के लिए चलने की आज्ञा दी ।

सिंह की तरह गरजता हुआ वह भी रथ पर चढ़कर निकला ।

लड़ाई के बाजे बजने लगे ।

उसके चलते ही अनेक अपशकुन हुए ।

उसके घोड़ों के पैर बार-बार फिसल जाते ।

रथ के ऊपर गिद्ध मँडराते और उसकी बाईं भुजा बार-बार फड़कती ।

रावण ने इनकी कुछ भी परवाह न की । वह घमंड से यह कहता हुआ युद्ध करने लगा कि आज मैं राम से सबका बदला लूँगा।

भयंकर युद्ध छिड़ गया । बंदरों की लाशों से समर भूमि पट गई ।

रावण जिधर को भी मुँह करता भगदड़ मच जाती । सुषेण और सुग्रीव ने वानर सेना को सँभाला । स॒ग्रीव और विरुपाक्ष का युद्ध छिड़ गया ।

दोनों एक-दूसरे पर घातक चोटें करने लगे | सुग्रीव ने विरुपाक्ष के हाथी पर चोट की ।

वह बैठ गया । तब विसरुपाक्ष ने तलवार से सुग्रीव कों घायल कर दिया ।

अंत में सुग्रीव के पक्के के प्रहार से विउपाक्ष ढेर हो गया । इसी प्रकार द्वंद्व युद्ध में उन्होंने महोदर को भी मार डाला । इसी बीच वोरबर अंगद ने महापार्श्व का काम तमाम कर दिया ।

अब केवल रावण बचा ।

वह फन कुचले हुए नाग की भाँति फुफकारने लगा ।

उसके सामने बंदरों को भागते देख श्रीराम धनुष बाण लेकर आ गए ।

अब राम-रावण युद्ध छिड़ गया ।

वे एक-दूसरे के प्रहारों को बड़ी देर तक व्यर्थ करते रहे ।

उनके बाण जब चलते, तो 'रणभूणि में बिजली-सी कौंध जाती । इतने में: लक्ष्मण और विभीषण भी आ गए ।

विभीषण ने रावण के सारथी को और घोड़ों को मार दिया ।

विभीषण को आगे देखकर रावण को बड़ा क्रोध आया । उसने विभीषण को मारने के लिए एक भयंकर शक्ति बाण छोड़ा । लक्ष्मण ने उसे बीच में ही काट दिया । तब उसने दूसरी शक्ति छोड़ी ।

उस दिव्य शक्ति को देखकर लक्ष्मण ने विभीषण को पीछे कर लिया । शक्ति लगते ही लक्ष्मण अचेत हो गए ।

श्रीराम पास में ही थे । उम्होंने उस शक्ति को खींचकर निकाल दिया। रावण को मौका मिल गया ।

उसने श्रीराम को बुरी तरह घायल कर दिया । क्रोध के कारण राम की आँखों से आग बरसने लगी । हनुमान और सुग्रीव को लक्ष्मण की देखभाल में छोड़कर वे रावण से भिड़ गए ।

उन्होंने कहा, रावण ! तेरा काल तुझे आज मेरे सामने ले आया है।

आज पाप पर पुण्य का की विजय होगी । अंधकार पर प्रकाश की विजय होगी ।

देवताओं और ऋषि -मुनिर्यों का दुःख दूर होगा , वानर मित्रों तुमने बहुत युद्ध किया ।

अब तम पहाड़ की चोटियों से मेरा और रावण का युद्ध देखो ।

राम-रावण जैसा युद्ध फिर तम्हें कभी देखने को न मिलंगा ।

इधर सुषेण ने हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी मंगाकर लक्ष्मण की चिकित्सा की | बूटी सूंघते ही शरीर में घुसे हुए बाण अपने आप निकल पढ़ | रक्त बहना बंद हा गया और घाव भर गए । हस समाचार से राम की चिन्ता मिटी और वे पुरे उत्साह से युद्ध करन लगे | रावण भी राम पर बाणों की अरोक वर्षा करन लगा |

राबण सुसज्जित रथ मेँ बैठा युद्ध कर रहा था |

यह देखकर देवताओं क राजा ने अपने

वार्गथ मातलि के हाथ अपना रथ श्रीराम के लिए भंजा ।

इस रथ में इंद्र का विशाल घनुष अमोच्र, क़बच, शक्ति बाण तथा अन्य अस्त्र-शस्त्र भी थ। अब श्रीराम इंद्र के रथ पर चढ़कर युद्ध करने लगे ।

रावण ने गंधर्व अस्त्र छोड़ा । इसी नाम के अस्त्र से राम ने उसे काट दिया । तब रावण ने राक्षस-अस्त्र का प्रयोग किया, उसे राम ने गुरु-अस्त्र काट दिया । राम पर जब उसका बस न चला तो रावण ने मातलि को घायल कर दिया ।

इंद्र के रथ की ध्वजा काट ही और घोड़ों पर भी बाण छोडे फिर राम को भी घायल के रावण गरजने लगा । रावण का ताकत बढ़ गया।

एक भयंकर शूल को हाथ में लेकर रावण बोला, राम ! अब तुम नहीं बच सकते । यह शूल तुम्हारे प्राण लेकर ही रहेगा ।”' राम ने अपने बाणों से शूल को रोकने का बहुत प्रयत्त किया, पर शूल रुका नहीँ । तब श्रीराम ने इंद्र द्वारा रथ में भेजी हुई शक्ति का प्रयोग किया । उससे ऐसा प्रकाश हुआ जैसा उल्का गिरने से होता है । शूल छिन्न-भिन्‍न हो गया । तब राम ने अपने पैने बाण उसके हृदय में और मस्तक में मारे । रक्त की धार बह निकली । राम रावण पर और रावण राम पर बराबर बाण बरसाते रहे ।

अब रावण हिम्मत हारने लगा, जब सारथि ने यह देखा तो वह रावण को लंका में लौटा ले गया । कुछ देर में जब राक्षसराज सावधान हुआ तो वह सारथि पर बहुत बिगड़ा । सारथि ने जब कारण बताया तो वह शांत हुआ और रथ के घोड़ों को बदलवाकर फिर युद्ध भूमि में आ गया ।

राम का आदेश पाते ही मातलि भी अपना रथ रावण के रथ के सामने ले आए। राम अब इंद्र के धनुष से युद्ध करने लगे । रथ इतने निकट आ गए थे कि घोड़ों का मुँह मिल जाते थे । श्रीराम ने बाणों से रावण के घोड़ों का मुँह मोड़ दिया । रावण ने भी राम के रथ के घोडों पर चोट की, पर उन पर कोई असर नहीं हुआ ।

युद्ध अंत दिखाई नहीं दे रहा था ।

राम सोचने लगे कि जिन बाणों से मैंने सहज ही खर-दूषण को मार दिया, विराध और कबंध का वध किया, बालि को मारा और समुद्र में आग लगा दी, वे बाण रावण के सामने बेकार हो गए । मातलि ने कहा, “मैं देख रहा हूँ कि आप रावण पर तो चोट कर ही नहीं पाते ।

आपकी सारी शक्ति तो रावण के प्रहारों से बचने में ही लग रही है । जब तक आप ब्रह्मास्त्र का प्रयोग न करेंगे, काम न चलेगा । राम को अब महर्षि अगस्त्य द्वारा दिए गए बाण की याद आई । अगस्त्य ऋषि को यह बाण ब्रह्माजीं से मिला था । श्रीराम ने उस अमोघ बाण को धनुष पर चढ़ाया और कान तक खींचकर छोड़ दिया । रावण के वक्ष को चीरता हुआ वह बाण पार निकल गया और फिर राम के तरकस में लौट आया । रावण के हाथ से धनुष छूट गया और वह रथ से पृथ्वी पर गिर पड़ा ।

रावण के मरते ही देवताओं ने श्रीराम की जय-जयकार और फूलों की वर्षा की | सुग्रीव, विभीषण, लक्ष्मण, हनुमान संब टकटकी लगाकर राम के मुँह की ओर देखने लगे ।

भाई का मृत शरीर लोटते देख विभीषण शोक से व्याकुल हो गए । वे रोते हुए बोले, “' भाईं ! आपके डर से तो काल भी काँपता था । जब गदा लेकर आप दिग्विजय को निकलते, तब पृथ्वी डगमगाने लगती थी । देवता अपने प्राण बचाने के लिए खोह, कंदराओं में छिप जातें। आज आपका शरीर धूल में लोट रहा है । राम से वैर करने का यही फल होता है । मैंने बहुत समझाया पर आपने एक न मानी । हाय! आज राक्षस बंश का नाश हो गया।

श्रीराम ने विभोषण को समझाया, “'मित्र ! रावण शोक करने योग्य नहीं । जिसने जन्म लिया है बह मरता अवश्य है| राबण को तो उत्तम मृत्य मिली है | वह वीर था और उसे बीरगति ही मिली । तुम शोक छोड़कर उसका विधि पूर्वक अंतिम संस्कार करो इतने में मंदोदरी आदि रानियां भी रणभूमि में आ गईं और रोने लगीं।

मंदोदरी के विलाप को सुनकर सबकी आंखों में आंसू आ गए। श्रीराम ने उन्हें समझा-बूझाकर उचित दाह-संस्कार करने के लिए कहा। रानियों को लेकर विभाषण नगर में चले गए ।

इंघर औराम ने मातलि को आदर के साथ विदा किया । सुग्रीव को श्रीराम ने हृदय से लगा लिया ओर कहा- मित्र ! तुम्हारी सहायता से ही इस राक्षसराज का अंत हो सका । वे सभी वानरों सं मिले ओर उनसे बोले--'तुम सबने जो मेरे साथ भलाई की है, उसे मैं कभी न भूलूंगा ।

दाह-संस्कार के बाद जब विभीषण लौट आए, तो श्रीरामचन्द्र जी की आज्ञा से लक्ष्मण ने नगर में जाकर विभीषण का राजतिलक किया । विभीषण सहित सब लोग राम के पास आ गए।

अब श्रोराम ने हनुमान से कहा, “महाराज विभीषण से अनुमति लेकर अशोक वाटिका जाओ । जनकनोंदिनी को युद्ध के समाचार दो । जो कुछ वे कहें, मुझे आकर बताओ ।

हनुमान से रण के समाचार पाकर जानकी बोलीं-.''मैं अब जितना जल्दी हो सके, स्वामी के दर्शन करना चाहती हूँ ।

सीताजी का समाचार पाकर श्रीराम ने विभीषण से कहा - “जानकी जी को स्नान कराकर और वस्त्राभूषणों से सजाकर ले आओ। विभीषण ने राजभवन में जाकर सुंदर वस्त्राभूषणों का प्रबंध किया और सीताजी का श्रृंगार करने के लिए चतुर स्त्रियों को अशोक वाटिका भेजा । तैयार होकर सीता हर्ष के साथ पालकी में बेठकर श्रीराम के पास आईं । श्रीराम ने विभीषण से कहा “मित्र ! अब मैं आज ही अयोध्या को लौट जाऊँगा ।

चौदह वर्ष की अवधि समाप्त हो रही है। भरत मेरे लिए दिन-रात तप कर रहा है । अगर एक भी दिन की देर हो गई, तो भरत मुझे जीवित न मिलेगा । इसलिए मेरे लौटने की तैयारी करें ।

विभीषण ने लंका में रुक कर विश्राम के लिए बहुत कहा, पर राम नहीं माने, तब विभीषण ने पुष्पक विमान मँगवाया ।

उस पर सफेद और पीली पताकाएँ फहरा रही थीं। खिड़कियों में रत्न जड़े थे । वह मन की गति से चलने वाला था । विभीषण बोले, प्रभो ! विमान आ गया, अब क्‍या आज्ञा है ?

श्रीराम ने कहा कि इस विमान में अपने कोष से रत्न-आभूषण भर लाइए और उन्हें वानर सेना में बरसा दीजिए । इन्होंने प्राणों का मोह छोड़कर मेरे लिए युद्ध किया है ।

विभीषण ने तुरंत आज्ञा का पालन किया । रत्न-आभूषण लूटकर वानर सेना बड़ी प्रसन्‍न हुई और रत्नों से खेलने लगी ।

सीता और लक्ष्मण सहित श्रीराम विमान पर बैठे । सुग्रीव, विभीषण और प्रमुख वानर वीरों ने साथ चलने की प्रार्थना की । श्रीराम ने उन सबको विमान पर बैठा लिया । आज्ञा पाते ही विमान उड़ चला । वानर अपने-अपने घर चले गए ।

विमान उत्तर की ओर उड़ने लगा | श्रीराम सीता को प्रमुख स्थानों के नाम बताते जाते थे, देखो ! पर्वत पर बसी यह लंका कितनी सुन्दर है । यह देखो रणभूमि है । देखो लक्ष्मण और सुग्रीव के मारे हुए कितने राक्षस पड़े हुए हैं।| देखो, यह नीचे सेतु बंध है । यहीं विभीषण से मेरी मित्रता हुई थी। वह देखो, आगे किष्किंधा है । यही वानर राज सुग्रीव की राजधानी है ।

किष्किंधा को देखकर सीताजी बोलीं, मेरी इच्छा है कि सुग्रीव की रानियाँ भी हमारे साथ अयोध्या चेलें।

विमान को नीचे उतरने की आज्ञा हुई , सुग्रीव अंतःपुर में गए । युद्ध के समाचार देकर उन्होंने तारा से सीताजी के अनुरोध की बात कही । तारा, रुमा और अन्य रानियाँ तैयार होकर विमान पर आ गईं , विमान फिर उड़ चला ।

श्रीराम ने सीताजी को दिखाया, यहीं सुग्रीव से मेरी मित्रता हुई थी।

पंपा सरोवर के किनारे राम ने शबरी का आश्रम दिखाया और कहा कि जब मैं तुम्हारे वियोग में भटक रहा था तो यहीं शबरी से मेरी भेंट हुई थी ।

फिर उन्होंने कबंध-वध, रावण-जटायु संग्राम के स्थान सीताजी को दिखाए “सीता, देखो ! यह जनस्थान है। यह देखो पंचवटी में हमारी पर्णकुटी अब तक बनी हुई है ।

यह गोदावरी नदी की विशाल धारा ऊपर से कैसी पतली दिखाई दे रही है । अगस्त्य के आश्रम, सती अनुसूया के आश्रम, चित्रकूट और यमुना नदी पर उड़ता हुआ विमान प्रयाग पहुँचा ।

तुरंत ही श्रृंगवेरपुर दिखाई देने लगा और फिर सरयू और अयोध्या नगरी भी दीख पड़ी । राम ने कहा, “सीता अपनी नगरी को नमस्कार करो ।

यह मेरी मातृभूमि मुझको प्राणों से भी अधिक प्यारी है। यहाँ का हर व्यक्ति मुझे प्यारा लगता है। सबने अयोध्या को प्रणाम किया ।

राम की आज्ञा से विमान लौटकर भरद्वाज मुनि के आश्रम में उतरा । श्रीराम ने मुनि को प्रणाम कर अयोध्या का कुशल समाचार पूछा ।

मुनि ने बताया कि अयोध्या में सब कुशल हें ।

धर्मात्मा भरत आपके दर्शन के लिए व्याकुल हैं । आज रात यही रहें, कल अयोध्या चले जाएँ । श्रीराम ने मुनि का आतिथ्य स्वीकार कर लिया ।

मुनि के प्रताप से सब वृक्ष फलों से लद गए । सबने अमृत के समान मीठे फल खाए, तब श्रीराम ने हनुमान से कहा, “तुम अयोध्या जाकर हमारे आने की सूचना भरत को दो ।

रास्ते में निषादों के राजा गुह से भी मिलना ।

वे मेरे बड़े मित्र हैं । उनसे तुम्हें भरत का सच्चा समाचार मिल जाएगा। उसके बाद श्रीराम ने सीताजी को दिखाया, यहीं सुग्रीव से मेरी मित्रता हुई थी। पंपा सरोवर के किनारे राम ने शबरी का आश्रम दिखाया और कहा कि जब मैं तुम्हारे वियोग में भटक रहा था तो यहीं शबरी से मेरी भेंट हुई थी । फिर उन्होंने कबंध-वध, रावण-जटायु संग्राम के स्थान सीताजी को दिखाए “सीता, देखो ! यह जनस्थान है। यह देखो पंचवटी में हमारी पर्णकुटी अब तक बनी हुई है । यह गोदावरी नदी की विशाल धारा ऊपर से कैसी पतली दिखाई दे रही है ।

अगस्त्य के आश्रम, सती अनुसूया के आश्रम, चित्रकूट और यमुना नदी पर उड़ता हुआ विमान प्रयाग पहुँचा । तुरंत ही श्रृंगवेरपुर दिखाई देने लगा और फिर सरयू और अयोध्या नगरी भी दीख पड़ी । राम ने कहा, “सीता अपनी नगरी को नमस्कार करो । यह मेरी मातृभूमि मुझको प्राणों से भी अधिक प्यारी है। यहाँ का हर व्यक्ति मुझे प्यारा लगता है। सबने अयोध्या को प्रणाम किया ।

राम की आज्ञा से विमान लौटकर भरद्वाज मुनि के आश्रम में उतरा | श्रीराम ने मुनि को प्रणाम कर अयोध्या का कुशल समाचार पूछा । मुनि ने बताया कि अयोध्या में सब कुशल हें । धर्मात्मा भरत आपके दर्शन के लिए व्याकुल हैं । आज रात यही रहें, कल अयोध्या चले जाएँ । श्रीराम ने मुनि का आतिथ्य स्वीकार कर लिया ।

मुनि के प्रताप से सब वृक्ष फलों से लद गए । सबने अमृत के समान मीठे फल खाए, तब श्रीराम ने हनुमान से कहा, “तुम अयोध्या जाकर हमारे आने की सूचना भरत को दो । रास्ते में निषादों के राजा गुह से भी मिलना । वे मेरे बड़े मित्र हैं । उनसे तुम्हें भरत का सच्चा समाचार मिल जाएगा। उसके बाद नंदिग्राम जाकर भरत से भेंट करना और उन्हें हमारे वनवास की अवधि पूरी कर लौट आने का समाचार देना, फिर अयोध्या का समाचार लेकर तुम शीघ्र लौटो । जाकर भरत से भेंट करना और उन्हें हमारे वनवास की अवधि पूरी कर लौट आने का समाचार देना, फिर अयोध्या का समाचार लेकर तुम शीघ्र लौटो ।

मनुष्य का रूप बनाकर हनुमान पहले गुह से मिले और भरत का समाचार लिया । फिर नंदिग्राम में भरत के पास पहुँचे । राम के आने का समाचार पाकर भरत फूले न समाए |

अयोध्या का समाचार लेकर हनुमान श्रीराम के पास पहुँच गए । विमान अयोध्या की ओर उड्ड चला । इधर अयोध्या में श्रीराम, सीता और लक्ष्मण के स्वागत की तैयारियाँ होने लगीं | सारा नगर बंदनवार और पताकाओं से सज गया । तरह-तरह के बाजे बजने लगे । माताओं ने आरती के थाल सजाए | भरत ने राम की चरण पादुकाएँ सिर पर रख ली । विमान की प्रतीक्षा में सब लोग नंदीग्राम में इकट्ठे हो गए ।

विमान को देखते ही श्रीरामचंद्र की जय से आकाश गूँज गया | रामचंद्र जी के उतरते ही भरत ने उनके चरणों में प्रणाम किया ।

श्रीराम ने भरत को गले लगा लिया ।

शत्रुघ्न से मिलकर राम सब अयोध्यावासियों से मिले । शत्रुघ्न ने लक्ष्मण और सीताजी के चरणों में प्रणाम किया । माताओं के चरणों में प्रणामकर श्रीराम वशिष्ठ जी के आश्रम में गए और उन्हें प्रणाम कर आशीर्वाद प्राप्त किया । भरत और शत्रुघ्न विभीषण, सुग्रीव आदि सभी से मिले ।

पुष्पक विमान को श्रीराम ने कुबेर के पास चले जाने की आज्ञा दी ।