अब राम ने राज-भबन में प्रवेश किया ।
सीताजी ने माताओं के चरण छुए और मनचाहा आशीर्वाद पाया ।
गुरु वशिष्ठ ने कहा, कल सबेरे ही राम का राजतिलक होगा । भरत बराबर राम से प्रार्थना कर ही रहे थे ।
राजतिलक की तैयारियाँ होने लगीं । गुरु ने स्वर्णजटित सिंहासन मँगवाया । राम और सीता उस पर बैठे ।
संबसे पहले वशिष्ठ ने राजतिलक किया । इसके बाद अन्य ब्राह्मणों ने टीका करके आशीर्वाद दिए ।
माताओं ने आरती उतारी और मंगल गीत गाए। प्रजा में आनंद की लहर दोड़ गई । इंद्र ने सौ कमलों की माला राम के लिए भेजी ।
इस अवसर पर श्रीराम ने सुग्रीच, विभीषण, अंगद आदि को बहुमूल्य उपहार दिए । सीताजी ने अपना कंठहार उतारा ।
राम ने कहा, “जिस पर तुम सबसे अधिक प्रसन्न हो, उसे दे दो ।'' सीताजी ने यह कंठहार हनुमान को दे दिया । तारा और रुमा को सीताजी ने बहुमूल्य रत्न और वस्त्र उपहार में दिए । सिर से लगाकर हनुमान ने इसे गले में पहन लिया । सुग्रीव, विभीषण आदि कुछ दिन तक अयोध्या में रहकर अपने-अपने नगर को लौट चले ।
श्रीराम ने दीर्घकाल तक अयोध्या में राज किया । उनके राज्य में प्रजा सब तरह से सुखी थी । सब लोग धर्म का पालन करते थे। किसी के साथ भेद-भाव न था। किसी को न कोई रोग
हुआ और न अकाल मृत्यु । समय पर पानी बरसता था और धरती भरपूर अन्न देती थी। वृक्ष फूलों और फलों से लदे रहते थे ।
रामराज्य को हम आज भी याद करते हैं और देश में उसे फिर ले आने का स्वप्न देखते हैं।