बंताजी प्लेटफार्म पर खड़े थे तभी ट्रेन आने की उद्धोषणा हुई और वे रेलवे ट्रैक पर कूद पड़े।
उन्हें देखकर
एक आदमी चिल्लाया - सरदारजी क्या कर रहे हो मर जाओगे!
तो बंताजी बोले 'मरेगा तो तू! अभी-अभी सुना नहीं कि ट्रेन प्लेटफार्म पर आ रही है।
एक उपन्यासकार ने अपनी विद्वता का रौब झाडते हुए अपने दोस्त संता सिंह से कहा- उपन्यास लिखना कोई आसान काम नहीं है। पता है, एक उपन्यास लिखने में कभी-कभी मुझे एक साल लग जाता है।
इस पर उपन्यासकार का दोस्त संता सिंह हंसते हुए बेफिक्री से बोला- तुम बेकार में इतनी मेहनत करते हो यार। पता है पंद्रह रूपये में तो लिखा- लिखाया उपन्यास मिल जाता है।
संता (बंता से)- क्या तुम बिना खाना खाए जीवित रह सकते हो ?
बंता (संता से)- लेकिन, मैं रह सकता हूं।
संता (बंता से)- कैसे ?
बंता (संता से)- नाश्ता करके।
बंता (संता से) - तुम इतने दिनों तक कहां थे ?
संता (बंता से) - मैं श्रमदान करने गया था।
बंता (संता से) - मैं समझा नहीं।
संता (बंता से)- दरअसल मुझे छह महीने का सश्रम कारावास मिला था।