एक गांव में एक किसान रहता था ।
उसका नाम था शेरसिंह ।
शेरसिंह शेर-जैसा भयंकर और अभिमानी था | वह थोड़ी सी बात पर बिगड़कर लडाई कर लेता था ।
गांव के लोगों से सीधे मुंह बात नहीं करता था ।
न तो किसी के घर जाता और न रास्ते में मिलने पर किसी को प्रणाम करता था ।गांव के किसान भी उसे अहंकारी समझकर उससे नहीं बोलते थे ।
उसी गांव में एक दयाराम नाम का किसान आकर बस गया ।
वह बहुत सीधा और भला आदमी था ।सबसे नम्रता से बोलता था, सबकी कुछ-न-कुछ सहायता किया करता था ।
सभी किसान उसका आदर करते थे ।
और अपने कामों में उससे सलाह लिया करते थे ।गांव के किसानों ने दयाराम से कहा -” भाई ! दयाराम तुम कभी शेरसिंह के घर मत जाना उससे दूर ही रहना ।
वह बहुत झगड़ालू है । ”दयाराम ने हंसकर कहा – ” शेरसिंह ने मुझसे झगड़ा किया तो मैं उसे मार ही डालूंगा ।
”दूसरे किसान भी हंस पड़े ।
वे जानते थे कि दयाराम बहुत दयालु । है वह किसी को मारना तो दूर किसी को गाली तक नहीं दे सकता ।लेकिन यह बात किसी ने शेरसिंह से कह दी ।
शेरसिंह क्रोध से लाल हो गया ।वह उसी दिन से दयाराम से झगड़ने की चेष्टा करने लगा ।
उसने दयाराम के खेत में अपने बेल छोड़ दिए बेल बहुत सा खेत चर गए; किंतु दयाराम ने उन्हें चुपचाप खेत से हाक दिया ।
शेरसिंह ने दयाराम के खेत में जाने वाली पानी की नाली तोड़ दी | पानी बहने लगा | दयाराम ने आकर चुपचाप नाली बांध दी ।
इसी प्रकार शेरसिंह बार-बार दयाराम की हानि करता रहा; किंतु दयाराम ने एक बार भी उसे झगड़ने का अवसर नहीं दिया ।
एक दिन दयाराम के यहां उनके संबंधी ने लखनऊ के मीठे खरबूजे भेजें | दयाराम ने सभी किसानों के घर एक-एक खरबूजा भेज दिया ।
लेकिन शेर सिंह ने उसका खरबूजा यह कहकर लौटा दिया – ” कि मैं भिखमंगा नहीं हूं| मैं दूसरों का दान नहीं लेता ।
”बरसात आयी | शेरसिंह एक गाड़ी अनाज भरकर दूसरे गांव से आ रहा था | रास्ते में एक नाले के कीचड़ में उसकी गाड़ी फंस गई ।
शेरसिंह के बैल दुबले थे | वे गाड़ी को कीचड़ में से निकाल नहीं सके।
जब गांव में इस बात की खबर पहुंची तो सब लोग बोले – ” शेरसिंह बड़ा दुष्ट है! उसे रात भर नाले में पड़े रहने दो ।
”लेकिन दयाराम ने अपने बलवान बैल पकड़े और नाले की ओर चल पड़ा | लोगों ने उसे रोका और कहा – ” दयाराम ! शेरसिंह ने तुम्हारी बहुत हांनी की है ।
तुम तो कहते थे, कि मुझ से लड़ेगा तो उसे मार ही डालूंगा।
| फिर तुम आज उसकी सहायता करने क्यों जाते हो ।दयाराम बोला – ” मैं आज सचमुच उसे मार डालूंगा तुम लोग सवेरे उसे देखना ।
”जब शेरसिंह ने दयाराम को बेल लेकर आते देखा तो गर्व से बोला – ” तुम अपने बेल लेकर लौट जाओ, मुझे किसी की सहायता नहीं चाहिए ।
दयाराम ने कहा – ” तुम्हारे मन में आवे तो गाली दो, मन में आवे मुझे मारो पर इस समय तुम संकट में हो ।
तुम्हारी गाड़ी फंसी है ।और रात होने वाली है, मैं तुम्हारी बात इस समय नहीं मान सकता ।
दयाराम ने शेरसिंह के बेलों को खोलकर अपने बैलगाड़ी में जोड दिए उसके बलवान बेलों ने गाड़ी को खींचकर नाले से बाहर कर दिया ।
शेरसिंह गाड़ी लेकर घर आ गया ।
उसका दुष्टस्वभाव उसी दिन से बदल गया ।वह कहता था – ” दयाराम ने अपने उपकार के द्वारा मुझे मार ही दिया।
अब मैं वह अहंकारी शेर सिंह कहां रहा ।
” अब वह सबसे नम्रता और प्रेम का व्यवहार करने लगा।