एक रात नींद में श्री कृष्ण के मुख से राधा का नाम निकला।
निकट ही सोई रुक्मणि की नींद टूट गई।
उसका चित्त अशांत हो गया।
सारी रात वह करवट बदलते रही।
सुबह सवेरे श्री कृष्ण की नींद खुलते ही रुक्मणि ने पूछा, “प्राण नाथ! ऐसा क्या है राधा में, जो सोते जागते हर घड़ी आप राधा का नाम जपते हैं।”
श्री कृष्ण मुस्कुराए।
बोले, “जानना चाहती हो प्रिये ?”
रुक्मणि ने हामी भरी।
“एक परीक्षा देनी होगी तुम्हें। कहो, तैयार हो।” श्री कृष्ण ने पूछा
रुक्मणि तैयार हो गई।
श्री कृष्ण रुक्मणि को लेकर यमुना तट की ओर चल पड़े।
राधा को भी संदेश भिजवा दिया गया।
जब तीनों यमुना तट पर पहुंचे, तब श्री कृष्ण ने अपना एक केश तोड़ा और उसके द्वारा यमुना के इस पार से लेकर उस पार तक एक महीन पुल बना दिया।
उसके बाद श्री कृष्ण ने यमुना से दो मटकी भरी।
एक मटकी रुक्मणि को दी, एक राधा को और बोले, ” मेरे प्रेम का स्मरण करते हुए ये मटकी पुल के पार पहुंचा दो।”
रुक्मणि मटकी लेकर पुल पर चलने लगी।
कुछ दूर चलने के बाद जब उसने पुल के दूसरी ओर देखा, तो सशंकित हो गई।
उसके कदम डगमगाने लगे।
उसने स्वयं को तो संभाल लिया, किंतु मटकी संभाल न पाई।
वह किसी तरह पुल तो पार कर गई, पर मटकी यमुना में गिर गई।
जब राधा की बारी आई, तो मटकी लेकर बड़ी सहजता से वो पुल पार कर गई।
यह देख रुक्मणि चकित हुई।
उसने राधा से पूछा, “बहन! ऐसा क्या था तुम्हारे प्रेम में, जो तुम मटकी लेकर यमुना पार कर गई ?”
राधा ने उत्तर दिया, “बहन! मैंने कहां यमुना पार किया ?
प्रिय के द्वारा मेरे हाथों में दी मटकी ने ही मुझे पार पहुंचाया।”
रुक्मणि को राधा के प्रेम की अथाह गहराई का भान हो गया।
समर्पण प्रेम का मूल है। जहां समर्पण है, वहां पूर्ण विश्वास है, शंका के कोई चिन्ह नहीं। राधा का श्री कृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पण भाव था। शंका लेश मात्र भी न थी। विश्वास था कि प्रिय ने हाथ में मटकी दी है, तो पार भी पहुंचाएगा।