तुम बिन मैं कुछ नही......सुधा...
मोहन ने सुधा का हाथ अपने हाथ मे लेके बोला...
"डाक्टर कहते है कि तुम मेरी बात नही सुन सकती पर मुझे पता है कि तुम मेरी बात....
मेरा स्पर्श सब महसूस करती हो....मोहन बोला...
फिर कुछ पल एक टक सुधा को देखता रहा...
"जल्दी से ठीक हो जाओ सुधा.....
तुम्हारी ये ख़ामोशी मुझे चुभती है .. ...
मुझे तो वो चुलबुली चहकती ,दिनभर पटर पटर बोलने वाली सुधा चाहिए...
तुम बिन मैं कुछ नहीं... ...
इस अनाथ को तुमने अपने प्यार से एक परिवार का सुख दिया जिसके लिए मैं बचपन से तरसता रहा.. ..
फिर तुम्हारे आने से मेरी बंजर ज़िंदगी जैसे फिर से हरी भरी हो गयी..
अरे ऐसे क्या देख रही हो.. ...
मैं सच कह रहा हूँ सुधा.....
तुमने जहा एक ओर पत्नी बन मेरी ज़िंदगी को प्यार के रंग रंगीन किया ..
वही अपने दुलार व मेरी परवाह कर एक मां की तरह अपने प्यार का आँचल मेरे सर पे रखा...
कभी कुछ गलत करने पे एक पापा की जैसे डांटा औऱ फिर एक पापा के जैसे सही गलत बता के मेरा मार्गदर्शन भी किया.
और कभी खुद बच्ची बन कभी चुस्की की ...,
कभी इमली की ऐसी कितनी छोटी छोटी फरमाइशें कर मुझे बड़प्पन का एहसास दिलाया तुमने..
हमने साथ मे ज़िंदगी के खुशनुमा तीस सावन साथ मे बिताये.. ...
आज जब तुम मुझसे दूर हो तो पहली बार एहसास हो रहा है कि तुम मेरी ज़िंदगी की ज़रूरत नही बल्कि मेरी ज़िंदगी ही हो सुधा.....
यहा अस्तपाल में सब मुझको पागल समझते है मेरे पीठ पीछे मेरा मज़ाक भी उड़ाते है कहते है ...
"कितना बेवकूफ है कोमा में कोई सुनता है भला....
पर मुझे इन पे गुस्सा नही आता..
जब तुम मुझसे रूठती थी तो कहती थी ना....
"ये बादल तो या तो शांत रहता है या गुस्सा की बारिश करता प्यार भरी बारिश तो करना जैसे आता ही नही" ..
"तुमको पता है मैं अब गुस्सा भी नही होता किसी पे करूँ.......
गुस्सा तो अपनो पे किया जाता है ना.....
ये कहके मोहन का गला रुंध हो गया..
मेरी ज़िंदगी की हरियाली तुम ही हो सुधा....
तुम बिन मैं कुछ नही....
प्लीज मेरे दिल की पुकार सुन लो....
मुझे एक बार फिर से अनाथ मत करो,एक बार फिर मेरी बंजर ज़िंदगी को अपने प्यार की हरियाली से हरा कर दो...
सुधा का हाथ अपने हाथ मे लेके आज मोहन जैसे बादलों की बारिश की तरह आंसूओ से बरस पड़ा..
बादल के आंसूओ से सुधा का हाथ भीग गया उसके हाथ मे थोड़ी हलचल हुई..
जैसे मानो मोहन के आँसू बादल रुपी वर्षा से सूखी धरा का रोम रोम खिल गया हो...