रवि एक आलसी और मस्तिष्कशाली छात्र था जो 11वीं कक्षा में पढ़ रहा था।
वह कक्षा में हमेशा उलझन में रहता था क्योंकि उसकी माता-पिता उससे उम्मीद करते थे
और उसके अच्छे अंक की प्रतीक्षा करते थे।
एक दिन, वह कक्षा के सबसे पुराने और सबसे सख्त शिक्षक,
श्रीमती गीता देवी की कक्षा में पहुँचा।
गीता देवी ने रवि के दिल में जो खोजी, वह कभी खुद नहीं समझ पाती थी।
कक्षा की मेजों पर बैठते समय, रवि की नजर गीता देवी की ओर गई,
और वह उनकी महक और गुस्सा की वजह से बहुत प्रभावित हुआ।
गीता देवी के खास सख्ती और महक ने उसका दिल छू लिया।
वह दिन-दिन बितते गए और रवि की मन में गीता देवी के प्रति एक खास भावना विकसित होने लगी।
उसने खुद से वादा किया कि वह उसे अपनी कठिनाइयों का सामना करने में
मदद करेगा और उसके शिक्षा के क्षेत्र में मार्गदर्शन करेगा।
एक दिन, वह बहुत साहसी होकर गीता देवी के पास गया और उसे अपनी माता-पिता की उम्मीदों के बारे में बताया।
गीता देवी ने उसे समझाया कि उम्मीदें सिर्फ अंकों में नहीं होती, बल्कि ज्ञान और समझ में भी।
उस दिन के बाद, रवि ने अपनी पढ़ाई में नए उत्साह के साथ पूरी लगान दिखाई।
उसने गीता देवी के मार्गदर्शन में अध्ययन किया और उसके अंक सुधारने में कामयाबी पाई।
कक्षा के समापन के बाद, रवि ने गीता देवी से अपनी प्रगति की बारे में बताया।
गीता देवी थीरी बेहद गर्मीदार हो गई और उसने रवि की मेहनत और संघर्ष की प्रशंसा की।
इस तरह, गीता देवी के मार्गदर्शन में, रवि ने न केवल अच्छे अंक हासिल किए,
बल्कि उसने खुद को एक नई दिशा देने का साहस भी जुटाया।
रवि और गीता देवी के बीच एक खास संबंध बना जो उनकी जीवन में हमेशा के लिए बदल गया।