रजनी के मौत के बाद विनोद बाबू का घर में रहना मुश्किल हो गया था।
वे बेमन से अपने घर में आ पाते थे, लेकिन मंजुला के आने के बाद सब कुछ बदल गया।
साधारण कदकाठी के विनोद बाबू पहले जैसे-तैसे रहते थे, लेकिन दूसरी शादी के बाद वे सलीके से कपड़े वगैरह पहनने लगे थे।
वे चेहरे की बेतरतीब बढ़ी हुई दाढ़ीमूंछ को क्लीन शेव में बदल चुके थे।
उन की आंखों पर खूबसूरत फ्रेम का चश्मा भी चढ़ गया था।
इतना ही नहीं, सिर के खिचड़ी बालों को भी वे समयसमय पर डाई करवाना नहीं भूलते थे।
वैसे तो विनोद बाबू की उम्र 48 के करीब पहुंच गई थी, लेकिन जब से उन की मंजुला से दूसरी शादी हुई थी, तब से वे सजसंवर कर रहने लगे थे।
इस का सुखद नतीजा यह हुआ है कि वे अब 38 साल के आसपास दिखने लगे थे।
इसी साल नवरात्र के बाद अक्तूबर के दूसरे हफ्ते में विनोद बाबू मंजुला से कोर्ट मैरिज कर चुके थे।
तब से उन की जिंदगी में अलग ही बदलाव दिखने लगा था।
पहले वे छुट्टी के बाद भी किसी बहाने देर तक अपने स्कूल में जमे रहने की कोशिश करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं था।
अभी शाम के साढ़े 4 बज रहे थे।
विनोद बाबू अपनी बाइक खड़ी कर के घर में कदम रख चुके थे।
वे फ्रैश होने के बाद खुद को तरोताजा महसूस करने लगे थे।
मंजुला घर की छोटीमोटी चीजों को सहेजने में लगी हुई थी।
बेटाबेटी ट्यूशन पढ़ने गए हुए थे।
मंजुला को अकेली देख कर विनोद बाबू ने उन्हें पकड़ कर अपनी गोद में बैठाने की कोशिश की।
मंजुला बनावटी गुस्सा जाहिर करते हुए बोली, ‘‘मम्मीजी अपने कमरे में ही हैं।
आप की आवाज सुन कर इधर आ जाएंगी।
‘‘मैं अपनी मां को बहुत अच्छी तरह से जानता हूं।
हम दोनों के रहते वे इस कमरे में कभी नहीं आएंगी…’’ इतना कह कर वे मंजुला को अपनी बांहों में भर कर प्यार करने लगे।
तभी सासू मां ने बहू को आवाज लगाई।
मंजुला खुद को छुड़ाते हुए अपनी सासू मां के कमरे की तरफ चली गई।
सासू मां ने मंजुला से कहा, ‘‘बहू, चाय बना दो।
’’ मंजुला ने हां कह दी।
वैसे उन्हें पता है कि सास को शाम के समय अपने पड़ोसियों के घर आनेजाने की पुरानी आदत है।
जब तक वे 2-4 लोगों से जी भर कर बातें नहीं कर लेती हैं, उन का मन ही नहीं लगता है।
मंजुला नीले रंग की साड़ी में काफी खूबसूरत लग रही थी।
उस ने अपने होंठों पर हलके गुलाबी रंग की लिपस्टिक लगा रखी थी।
लंबे और खुले बाल उस की खूबसूरती को बढ़ा रहे थे।
सासू मां के कमरे से लौटने के बाद मंजुला ने विनोद बाबू से कहा, ‘‘आप स्कूल से थक कर आए हैं।
थोड़ी देर आराम कर लीजिए।
मैं आप के लिए भी चाय बना कर ला रही हूं।
’’ मंजुला ने कुछ दिन में ही घर की रंगत ही बदल डाली थी।
विनोद बाबू की पहली बीवी रजनी कैंसर के चलते गुजर गई थीं।
तकरीबन 6 महीने तक कैंसर अस्पताल में भागदौड़ कर अपनी बीवी की वे समय-समय पर कीमो थैरेपी कराते रहे थे।
वे इधर-उधर से पैसे जुटा कर पानी की तरह बहा चुके थे, लेकिन आखिरी बार हुई की मोथैरेपी के बाद दस्त और उलटी इतनी ज्यादा बढ़ गई थीं कि वे इन्हें अकेला छोड़ कर चली गईं।
रजनी के मौत के बाद विनोद बाबू का घर में रहना मुश्किल हो गया था।
वे बेमन से अपने घर में आ पाते थे, वह भी सिर्फ अपने 10 साल के बेटे और बूढ़ी मां के लिए।
पर सब्र बुरे से बुरे वक्त का सब से बड़ा मरहम होता है।
कई साल गुजर गए थे।
पत्नी की मौत के बाद ऐसा लगा था कि विनोद बाबू दोबारा शादी नहीं करेंगे।
जब पूरी दुनिया के साथ अपने देश में कोरोना वायरस की शुरुआत हुई, तो वह सब के लिए आफत ले कर आई थी।
विनोद बाबू को कोरोना महामारी के दौरान अपने स्कूल में बने सैंटर में काम करना पड़ा था।
वे दूसरे राज्यों से आए हुए लोगों की काफी मुस्तैदी से सेवा में जुटे हुए थे, लेकिन उन्हें वहां ड्यूटी करना महंगा पड़ गया था, क्योंकि वे खुद भी कोविड 19 की चपेट में आ चुके थे।
साथी टीचरों ने एंबुलैंस बुला कर विनोद बाबू को अस्पताल में भरती करवा दिया था।
वे कई दिनों से अस्पताल के वार्ड में पड़े हुए थे।
घर पर बेटा अर्नव था।
उन का छोटा भाई अपने बीवीबच्चों के साथ अलग रह रहा था।
विनोद बाबू अपनी मां और बेटे के साथ अलग रहते थे।
विनोद बाबू से 2 दिन पहले इस वार्ड में मंजुला आई थी।
सांवले रंग की मंजुला देखने में काफी दुबलीपतली लग रही थी, पर खूबसूरत बहुत थी।
रहरह कर उन की नजरें मंजुला की ओर चली ही जा रही थीं।
2 दिन बाद रात में विनोद बाबू की तबीयत अचानक ज्यादा बिगड़ने लगी थी।
रात की शिफ्ट में काम करने वाले डाक्टर और नर्स ऊंघ रहे थे।
उन्हें भी महामारी के चलते ज्यादा काम करना पड़ रहा था।
ज्यादातर मरीज सोए हुए थे।
उस रात मंजुला की तबीयत ठीक थी, लेकिन से नींद नहीं आ रही थी।
विनोद बाबू की हालत बिगड़ते देख उस से रहा नहीं गया और वह उन के पास आ गईं।
विनोद बाबू का औक्सीजन लैवल कम हो रहा था।
छटपटाते देख वह उन के पास आ कर बोली, ‘‘आप पेट के बल लेट कर लंबीलंबी सांस भरने और छोड़ने की कोशिश कीजिए।
’’ मंजुला विनोद बाबू की पीठ सहलाने लगी थी।
इस से उन्हें राहत महसूस होने लगी थी।
कुछ देर में ही उन का औक्सीजन लैवल सामान्य होने लगा था।
उन्होंने मंजुला का शुक्रिया अदा किया था।
एक दिन मंजुला के बगल वाले बिस्तर की अधेड़ औरत मरीज मर गई।
उस का बिस्तर अब खाली हो चुका था।
वार्ड में दहशत का माहौल बन चुका था, इसीलिए मंजुला को उस रात नींद नहीं आ रही थी।
मंजुला को बेचैन देख कर विनोद बाबू से रहा नहीं गया था।
आखिरकार उन्होंने मंजुला से पूछा, ‘‘अगर तुम्हें कोई परेशानी हो रही है, तो मेरे पास वाले खाली बिस्तर पर आ जाओ।
’ ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है…’’ मंजुला ने यह कह तो दिया था, पर वह उस दिन काफी डर गई थी।
विनोद बाबू के बारबार कहने पर मंजुला उन के बगल वाले खाली बिस्तर पर आ गई थी।
‘‘तुम्हारे घर में कौनकौन लोग हैं?’’
‘‘मेरे घर में सास, ससुर, पति के अलावा 7 साल की एक बेटी है।’’ ‘‘बेटी तो तुम्हें बहुत याद करती होगी ?’’
‘‘पता नहीं याद करती होगी भी या नहीं,’’ यह कह कर मंजुला उदास हो गई थी।‘‘परिवार वाले भी तुम्हें बहुत मिस कर रहे होंगे?’’ यह सुन कर मंजुला थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली, ‘‘ऐसा कुछ नहीं है।
मैं आज तक अपनी बेटी के बाद एक बेटे को जन्म नहीं दे पाई हूं, इसलिए घर के लोग नाखुश हैं।
वैसे, मेरे शरीर के अंदर कुछ ऐसी परेशानी आ गई है कि डाक्टर ने साफ कह दिया है कि अब मैं दोबारा मां नहीं बन पाऊंगी।
‘‘मेरी बेटी अपनी दादी के पास रह रही है।
वे सब तो चाहते हैं कि मैं मरूं तो मेरे पति को दूसरी शादी करने का मौका मिले, ताकि उन के घर में बेटे का जन्म हो सके।
’’ विनोद बाबू हैरानी से मंजुला के चेहरे की ओर देख रहे थे, इसलिए वे कुछ देर तक चुप रही, फिर बोली, ‘‘वैसे, मैं भी अब उन को शादी करने की इजाजत दे देना चाहती हूं।
’’ विनोद बाबू को यह सब सुन कर झटका सा लगा था, ‘‘बेटा या बेटी पैदा करना किसी के बस में नहीं होता है।
फिर भी आज भी लोग किसी औरत से कैसे उम्मीद रखने लगते हैं कि उन के मन के मुताबिक बेटा या बेटी जनमे।
‘‘21वीं सदी में भी लोगों की सोच नहीं बदल रही है, जबकि आज लड़कियां आसमान की ऊंचाइयों पर उड़ रही हैं,’’ विनोद बाबू मंजुला को समझाने की कोशिश कर रहे थे।
एकदूसरे के सुखदुख बांटते हुए अस्पताल में दिन बीत रहे थे।
जब मंजुला पूरी तरह से ठीक हो गई और डाक्टर ने डिस्चार्ज करने की इजाजत दे दी, तब भी उन के घर से कोई नहीं आया था।
मंजुला के पति अस्पताल में भरती कराने के बाद यह कह कर जा चुके थे, ‘तुम मर भी जाओगी, तो मैं तुम्हें यहां देखने नहीं आऊंगा।
’ पति की यही नफरत भरी बातें मंजुला को घर जाने से रोक रही थीं. वैसे, वह भी अपनी सास और पति के रोजरोज के तानों से तंग आ चुकी थी।
इधर विनोद बाबू उन्हें घर तक छोड़ने के लिए तैयार थे, लेकिन मंजुला ने उन से कहा, ‘‘आप जाइए।
मैं बाद में घर चली जाऊंगी।
’’ विनोद बाबू समझ गए तो उन से रहा नहीं गया और बोले, ‘‘चलो, मेरे घर चलो।
तुम मेरे घर में पूरी तरह से सुरक्षित रहोगी।
तुम्हारी भावनाओं का पूरा खयाल रखा जाएगा।
’’ मंजुला जानती थी कि विनोद बाबू के साथ वह वाकई महफूज रहेगी और फिर कुछ सोचते हुए उस ने हां कह दी।
अब मंजुला विनोद बाबू के घर में रहने लगी और इस बात का पता उस के पति और परिवार वालों को चला तो उन के तेवर और सुर बदल गए थे।
उन्होंने विनोद बाबू पर मंजुला को बरगलाने का आरोप लगाया था, लेकिन मंजुला अपने फैसले पर अडिग रही थी।
विनोद बाबू के परिवार की मदद से मंजुला अपने पति से तलाक लेने के लिए कोर्ट में अर्जी दाखिल कर चुकी थी।
तकरीबन ढाई साल तक केस चलता रहा।
जब भी वह अदालत में जाती थी, विनोद बाबू की माताजी उन के साथ रहती थीं।
तकरीबन ढाई साल की भागदौड़ और सामाजिक हिकारत सहने के बाद मंजुला अपने पति से तलाक ले पाई थी।
तलाक के अगले दिन यानी दशहरा के बाद अक्तूबर के दूसरे हफ्ते में कोर्ट में ही मंजुला विनोद बाबू की दूसरी पत्नी बनना स्वीकार कर चुकी थी।
मंजूला को कोर्ट के आदेश के मुताबिक बेटी को भी अपने पास रखने की परमिशन मिल चुकी थी, क्योंकि बेटी भी अपनी मां के साथ ही रहना चाहती थी।
मंजुला अपने सासू मां को चाय पिला चुकी थी।
सासू मां चाय पीने के बाद अपनी सहेली के घर जा चुकी थीं।
अब मंजुला ट्रे में 2 कप चाय ले कर अपने कमरे में हाजिर थी।
मंजुला ने जैसे ही टेबल पर चाय की ट्रे रखी, विनोद बाबू ने उस के होंठ चूम लिए. वह भी उन के गले लग गई थी।
आखिर में उस ने इशारा किया, ‘‘जनाब, चाय ठंडी हो जाएगी।
’’ वे दोनों बातें करते हुए चाय पीने लगे थे।
मंजुला चाय खत्म कर विनोद बाबू के बगल में आ कर लेट गई थी।
‘‘तुम्हारे साथ बातें करने में ही मेरी सारी थकान मिट जाती है,’’ विनोद बाबू मनुहार करते हुए बोले थे।
मंजुला ने अपना सिर उन के सीने पर रख दिया।
सालों बाद उन्हें ऐसी खुशी मिल रही थी।