सुनहरे हंस की कहानी

बहुत पुराने दिनों की बात है। एक झील में एक हंस रहता था। वह हंस विशेष था. उसके सुंदर सुनहरे पंख थे।

वहीं झील के पास एक बूढ़ी औरत अपनी बेटियों के साथ रहती थी।

बहुत ज़्यादा मेहनत करने के बाद भी वे गरीब ही रहे। एक दिन, हंस ने सोचा, “क्यों ना मैं इस बुढ़ी औरत के परिवार को एक सुनहरा पंख दे दूँ जिसे बेचकर ये अपना जीवन यापन कर पाएं।”

हंस ने ऐसा ही किया और अगले दिन बुढ़िया के पास जा पहुँचा।

उसे देखकर बूढ़ी औरत ने कहा, “मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं है!”।

ऐसा कहने पर हंस ने कहा, “लेकिन, मेरे पास तुम्हारे लिए कुछ है!” और बुढ़ी औरत को पुरी योजना समझाई।

बुढ़ी औरत को हंस की योजना पसंद आई और उन्होने उस पर आगे बढ़ने का विचार किया।

अगले दिन बुढ़िया और उसकी बेटियाँ सोने का पंख बेचने के लिए बाजार गई और उस दिन, वे हाथ में पर्याप्त धन लेकर खुश होकर वापस आए।

हंस दिन-ब-दिन बुढ़िया और उसकी बेटियों की मदद करता रहता।

बेटियाँ हंस के साथ खेलना पसंद करती थीं और बरसात और ठंड के दिनों में उसकी देखभाल करती थीं!

जैसे-जैसे समय बीतता गया, बूढ़ी औरत और लालची होती गई! उसने अपनी बेटियों से कहा, “एक पंख से कुछ नही होता, ।

हमें अधिक पंख चाहिए. इसलिए कल जब हंस आए तो उसके सारे पंख तोड़ लेना।”

इस बात को सुनने पर, उन्होंने इस योजना में मदद करने से इनकार कर दिया।

अगले दिन बुढ़िया ने हंस के आने का इंतजार किया।

जैसे ही पक्षी आया, उसने अगले हिस्से को पकड़ लिया और पंखों को तोड़ना शुरू कर दिया।

जैसे ही उसने उन्हें तोड़ा, पंख सफेद हो गए। बुढ़िया रो पड़ी और हंस को जाने दिया।

इसपर हंस ने कहा, “तुम लालची हो गई हो! तुमने मेरी इच्छा के बिना इन्हे तोड़ना चाहा इसलिए, ये पंख सफेद हो गए!”

इतना कहकर हंस गुस्से में वहाँ से उड़ गया फिर कभी नहीं दिखायी पड़ा!

कहानी की सीख

अत्यधिक लोभ से बहुत हानी होती है. हमें हमें कुदरती रूप से जो मिलता है उसमें संतुष्ट रहना सीखना चाहिए और मेहनत से अधिक संसाधन जुटाने के लिए प्रयास करने चाहिए.