पराये भरोसे काम नहीं होता

एक सरसी खेत में घोंसला बनाकर रहती थी

और उसी में अपने बच्चे का लालन-पालन करती थी।

जब खेत की फसल पकने पर आई तब सारसी सोचने लगी।

अब खेत में कटाई चलेगी। इसलिए यहाँ रहना और बच्चों को रखना ठीक नहीं परन्तु बच्चों ने अभी तक उड़ना नहीं सीखा इसलिए उसने और कुछ दिन तक खेत में ठहरना ही आवश्यक समझा और बच्चों से कहा देखो।

मैं रोज ही घोंसला से बाहर जाती हूँ।

अब वहां खेत में किसान आयेंगे और भांति-भांति की बात करेंगे तुम ध्यान से वे बातें सुनना और फिर मुझे सुनाना।

जिससे मैं समय रहते तुम्हारी भलाई के लिए ठीक-ठीक से कुछ काम कर सकूं।

एक दिन सारसी घोंसला से बाहर कहीं कीड़े-मकोड़े लाने गई थी।

कुछ देर के बाद वहां खेत में किसान आया और पौधे देखते ही बोला अन्न पाक गया है।

कटने लायक हो गया है। अच्छा चलूँ। पड़ोसियों से कह दूँ। वे आएँगे और किसी दिन काट कर ले जायेंगे।

जब सारसी लौटकर घोंसला में आई तो बच्चों ने उसे किसान की सुनी बाते ज्यों की त्यों सुना दी। फिर उससे कहा बस हमें किसी दूसरी जगह ले चलो। मालुम नहीं, किसान कब यहां आ धमके और हमलोग के प्राण संकट में पद जाएं।

सारसी बोली जरा भी चिंता करने की बात नहीं है। किसान अपने पड़ोसियों के भरोसे हैं इसलिए अभी खेत कटने में बहुत देर है।

पड़ोसी अपने खेत काटेंगे या इसका खेत काटने आ जायेंगे।

कुछ दिन बाद किसान फिर खेत आया। उसने पौधे देखते-देखते अन्न तो बिल्कुल पक गया है।

परन्तु पड़ोसियों ने इसे काटने के लिए अब तक हाथ नहीं लगाया है।

उनका भरोसा करना व्यर्थ है। अच्छा चलूँ, भाइयों से कह कर देखूं। शायद वे आयें और इसे काट ले जाये।

अब शाम को सारसी घोंसले में वापस आई तो बच्चों ने उसे किसान की ये बातें भी ज्यों की त्यों सुना दी।

फिर उससे कहना शुरू किया। अब तो हमलोग को दूसरी जगह ले चलो। अब किसान के भाई खेत काटने आयेंगे और हमलोग के प्राण संकट में डालेंगे।

सारसी उसे समझाने लगी। पागल तो नहीं हो गए ? चिंता करने की कौन-सी बात है। अभी वे अपने खेत काटने में लगे हुए है।

भला वे अपना काम छोड़कर इसका खेत काटने क्यों आने लगे ?

दो-तीन दिन बाद किसान फिर खेत में आया और पीछे देखते ही कह उठा अब तो अनाज इस तरह पाक गया है कि पौधों से टूट-टूटकर झड़ने लगा है।

परन्तु मेरे भाइयों ने इसे काटने के लिए कुछ नहीं किया। यदि और देर हो जाएगी तो मुझे बहुत हानि उठानी पड़ेगी।

इसलिए अब दूसरों का मुँह ताकना व्यर्थ है। अब मैं अपना ही भरोसा करूंगा और सुबह से ही काटने में भिड़ जाऊंगा।

आज भी बच्चों ने सारसी की ये सारी बातें सुनाई फिर उसने आग्रहपूर्वक कहा-माँ! अब भीदूसरी जगह चलोगी या यहीं रहोगी हमलोगों के प्राण संकट में डालोगी ?

सारसी बोली-हां! अब चलूंगी। सबेरा होने से पहले ही यह जगह छोड़ दूंगी। अब किसान समझ गया है कि अपना काम पराय भरोसे नहीं होता। इसलिए वह कल अवश्य खेत काटने आयेंगे।