एक सरोवर में एक कछुआ रहा करता था।
उसके पास एक मजबूत कवच था।
यह कवच शत्रुओं से बचाता था।
कितनी बार उसकी जान कवच के कारण बची थी।
एक बार भैंस तालाब पर पानी पीने आई थी।
भैंस का पैर कछूए पर पड़ गया था।
फिर भी कछूए को कुछ नही हुआ।
उसकी जान कवच से बची थी।
उसे काफी खुशी हुई।
क्योंकि बार-बार उसकी जान बच रही थी।
यह कवच कछूए को कुछ दिनों में भारी लगने लगा।
उसने सोचा इस कवच से बाहर निकल कर जिंदगी को जीना चाहिए।
अब मैं बलवान हो गया हूं, मुझे कवच की जरूरत नहीं है।
कछूए ने अगले ही दिन कवच को शरीर से उतार दिया और तालाब में छोड़कर आसपास घूमने लगा।
अचानक हिरण का झुंड तालाब में पानी पीने आया।
ढेर सारी हिरनिया अपने बच्चों के साथ पानी पीने आई थी।
उन हिरणियों के पैरों से कछूए को चोट लगी, वह रोने लगा।
आज उसने अपना कवच नहीं पहना था।
जिसके कारण काफी चोट जोर से लग रही थी।
कछूआ रोता-रोता वापस तालाब में गया और कवच को पहन लिया।
इसके बाद कछूए ने फिर कभी कवच को नही उतारा।
कहानी की सीख
प्रकृति से मिली हुई चीज को सम्मान पूर्वक स्वीकार करना चाहिए। वरना जान खतरे में पड़ सकती है।