बिच्छू और संत

बरसात का दिन था।

एक बिच्छू नाले में तेजी से बेहता जा रहा था।

संत ने बिच्छू को नाली में बहता देख।

अपने हाथ से पकड़कर बाहर निकाल लिया।

बिच्छू ने अपने स्वभाव के कारण संत को डंक मार दिया और डंक मारने के चक्कर में संत के हाथ से छूटकर बिच्छू फिर से नाले में गिर गया।

संत ने बिच्छू को फिर अपने हाथ से निकाला।

लेकिन, बिच्छू ने संत को फिर डंक मारा।

ऐसा दो-तीन बार और हुआ।

पास ही वैद्यराज का घर था।

वह संत को देख रहे थे।

वैद्यराज दौड़ते हुए आए।

उन्होंने बिच्छू को एक डंडे के सहारे दूर फेंक दिया।

संत से कहा – आप जानते हैं बिच्छू का स्वभाव नुकसान पहुंचाने का होता है।

फिर भी आपने उसको अपने हाथ से बचाया। आप ऐसा क्यों कर रहे थे ?

संत ने कहा वह अपना स्वभाव नहीं बदल सकता तो, मैं अपना स्वभाव कैसे बदल लूं!

संत की बात को सुनकर वैद्यराज झुके और संत को प्रणाम किया।

कहानी की सीख

विषम परिस्थियों में भी अपने स्वभाव को नही बदलन चाहिए।