भला असन्तोष से क्या लाभ

एक शेर बहुत दुःखी हो उठा और एक दिन वह बह्माजी के सामने जा पहुंचा और लगा गिड़-गिड़ाने।

भगवान! मेरे शरीर में बल, पराक्रम, साहस और मजबूत हैं कि उनकी बदौलत में जंगल का राजा बना फिरता हूँ।

फिर भी एक मुर्गे की आवाज सुनते ही डर जाता हूँ - मेरे लिए शर्म की बात नहीं।

प्रभु आपने मुझे पैदा करते समय मेरे पीछे कौन-सी बला लगा दी ?

ब्रह्माजी ने शेर को समझाया - बेटा! यह कौन-सा असंतोष ले बैठे ? भला इससे कौन सा लाभ उठा लोगे ?

जो संसार में पैदा होता है। वह किसी न किसी बात में कम रहता है और उससे लाभ भी उठाता है।

जाओ, यह असंतोष छोड़ों और आनन्द से अपना समय बिताओ।

ब्रह्माजी के इस प्रकार समझाने पर भी शेर को संतोष नहीं हुआ।

वह मन में जलता-भुनता और ब्रह्माजी को कोस्टा हुआ वन की ओर लौटा।

मार्ग में क्या देखता है कि सामने में एक लम्बा चौड़ा भारी भरकम हाथी अपने कान बराबर हिलाता चला आ रहा है।

सूप जैसे बड़ा-बड़ा कान।

शेर ने हाथी से पूछा क्यों भाई! अपने सूप जैसे बड़े-बड़े कान लगातार हिलाते हुए चल रहे हो ?

हठी ने पैर आगे बढ़ाते-बढ़ाते उत्तर दिया-तुम इतना भी नहीं जानते ?

इन भन-भन करते हुए मच्छरों से बहुत डरता हूँ।

यदि इनमें से एक भी मच्छर मेरे कान में घुस जाए तो मैं बैचैन हो जाऊं तड़प-तपड़ कर मर जाऊं।

यह सुनते ही शेर को संतोष हो गया उसने अपने आप को कहा - भला मेरे दुःखी होने का कोई कारण नहीं है।

जब इतना बड़ा हाथी इतने छोटे मच्छर से रात दिन डरता है तब मैं मच्छर की उपेक्षा बहुत बड़े मुर्गे की आवाज से कांप उठता हूँ तो यह कौन सी अचरज की बात है।