कुत्ते और मुर्गे में बड़ी दोस्ती थी।
एक दिन दोनों घूमते-फिरते जंगल में जा पहुंचे और घंटों गप्पे लगाते रहे।
धीरे-धीरे शाम हो गई तथा रात सर पर आ पहुंची।
मुर्गे ने घबड़ाकर कहा-अब क्या किया जाए ? बातों ही बातों में सूरज डूब गया और यह चाँद दिखने लगा।
अब रात में घर पहुंचना तो मुश्किल है।
कुत्ता लापरवाही से बोला-घबड़ाने की क्या जरूरत है।
फुर्र से उस डाल पर जा बैठे और मजे से रात बिताओ। मैं भी इसी पेड़ के निचे डेरा डालकर खर्राटे मारता हूँ।
जब सबेरा होगा तब घूमते-फिरते घर पहुंच जाऊँगा।
बस मुर्गा फुर्र से पेड़ की डाल पर बैठा और कुत्ता पेड़ के तने से टिक कर धरती पर लेट गया।
सबेरा होते-होते मुर्गा जाएगा और अपनी आदत के अनुसार लगा जोर से बोलने कुकड़-कूं-कुकड़-कूं।
मुर्गा की यह कुकड़-कूं सारे जंगल में गूंज उठी और एक सियार लप-झप करता हुआ उस पेड़ के पास आ पहुंचा।
मुर्गे को देखते ही वह बहुत प्रसन्न हुआ और वह मन में सोचने लगा-कितना अच्छा है सबेरा आज का।
जरा-सी हिकमत लगाई कि मुर्गी कलेट बनकर मेरे मुंह में आया नहीं। मन में वह विचार आते ही सियार ने मुस्कुराकर मुर्गे से कहा-अहा मुर्गे भाई कितना मीठा है तुम्हारा गाना।
मुझे भी गाने का कुछ-कुछ शौक है। बस नीचे उत्तर जाओ थोड़ा देर के लिए और मेरे साथ गाओ।
क्या तुम मेरी यह छोटी-सी इच्छा पूरी नहीं कर सकते ?
मुर्गी भी बुद्धू नहीं था। वह सियार के मन की बात ताड़ गया। फिर भी मुस्कुराकर बोला तुम्हारी बात मुझे बहुत पसंद आई।
सियार भाई! मैं अभी नीचे आती हूँ और तुम्हारे सुर में सुर मिलाकर गाता हूँ।
मेरा एक मित्र उस तरफ पेड़ में सटकर सो रहा है। उसे भी जगा लो न ?
वह बजा बजायेगा और हम दोनों मिलकर गायेंगे, सच कहता हूँ मजा आ जायेगा।
यह सुनते ही सियार मारे ख़ुशी के नाच उठा। वह लपककर पेड़ के उस ओर में जा पहुंचा जिस ओर कुत्ता सो रहा था।
कुत्ते पर नजर पड़ते ही उसके प्राण सुख गए। वह तेजी से भागने लगा। मुर्गे की बात सुनकर कुत्ता सावधान ही चुका था।
भला यह सियार को कब छोड़ने वाला था। उसने एक सपाटे में उसका गला धार दबाया।
यह देखकर मुर्गा हंसा और बोला मूर्ख कहीं का। आया था मेरी बात में इतना भी नहीं जानता था कि जो दूसरों को छलता है वह स्वयं ही छला जाता है।