सबको प्रसन्न रखना मुश्किल है

एक किसान के पास एक टट्टू था।

एक दिन वह अपने बेटे को साथ लेकर टट्टू बेचने के लिए मेले की ओर चला।

मजे की बात यह थी कि किसान पैदल चल रहा था।

किसान का बेटा भी पैदल चल रहा था।

कुछ दूर जाने पर उन्हें तीन-चार लड़के मिले जो मेले से लौट रहे थे।

किसान और उसके बेटे को पैदल चलते देखकर उन लड़कों में से एक ने अपने साथियों से हँसते-हँसते कहा-ओह !

कितने बुद्धू हैं ये दोनों खुद पैदल चल रहे हैं और टट्टू को खाली लिए जा रहे है।

चाहे तो मजे से टट्टू पर चढ़कर मेले में जा सकते हैं, तुमने और भी कहीं देखते हैं, ऐसे बुद्धू ?

लड़के की ये बातें सुनकर किसान ने अपने बेटे को टट्टू पर बैठा दिया और वह खुद टट्टू को हांकता हुआ उसके पीछे-पीछे चलने से एक बूढ़ा आग बबूला होकर किसान के बेटे से बोला - अरे मूर्ख! नीचे उत्तर, जवान हो, तगड़ा है, फिर भी मजे से टट्टू पर लदा है और बेचारे बूढ़ा बाप पैदल चल रहा है, तुझे शर्म नहीं मालूम होती ?

चल उत्तर नीचे टट्टू पर बाप को सवार होने दे।

यह सुनते ही किसान का बेटा टट्टू से नीचे उत्तर परा और अपने पिता से बोला-बूढ़े बाबा ठीक ही कहते हैं, टट्टू पर आप सवार हो जाइए।

बस, किसान टट्टू पर बैठ गया और बेटा उसके पीछे-पीछे पैदल चलने लगा।

थोड़ा आगे बढ़ने पर उन्हें कुछ स्त्रियां मिली, जो अपने बच्चों को मेला दिखाकर लौट रही थी।

उनमें से एक स्त्री अपनी किसी साथिन से बोली-देख तो बहन! यह बूढ़ा कितना निर्दय है, इसमें जैसे शर्म का नाम ही नहीं है।

यह तो बड़े मजे से टट्टू पर सवार है और बेटे को ऐसी धूप में पैदल घसीट रहा है, हाय-हाय! टट्टू के पीछे दौड़ते-दौड़ते बेचारे लड़के का मुँह किस तरह सूख गया है।

अब किसान क्या करता, उसने अपने बेटे से कहा-आ! तू भी मेरे पीछे सवार हो जा ?

बेटा फ़ौरन बाप के पीछे सवार हो गया, इस प्रकार दोनों बाप-बेटा टट्टू पर चढ़कर आगे बढ़े ही थे कि सामने से एक बाबा जी आ निकले।

बाबाजी पहले आँखे फाड़-फाड़कर घूरते रहे, फिर मुंह बनाकर बोले-अरे भाई ! यह किसका टट्टू पकड़ लाए ?

किसान ने उत्तर दिया-टट्टू तो बाबाजी हमारा है। क्या क्या बात है ?

बाबाजी बिगड़कर बोले-यह टट्टू तुम्हारा है ? शर्म नहीं आती, जब तुम दोनों इस पर तरह लदे हो, इसकी जान ले लोगे तो, कौन मानेगा कि टट्टू तुम्हारा है।

इस पर किसान बेटे सहित टट्टू से नीचे उत्तर पड़ा और उसने बाबाजी से पूछा-बताइए। अब हमलोग क्या करें ?

बाबाजी ने उत्तर दिया-सीधी-सी तो बात है।

जिस तरह तुम इस पर लटककर आए हो उसी तरह इसे अपने कंधों पर लादकर ले जाओ, तो हम भी जानें कि यह टट्टू तुम्हारा है।

यह कहकर बाबाजी तो लम्बे हुए, मुसीबत में पड़ गए वे दोनों बाप-बेटा।

उन्होंने पहले तो टट्टू के चारों पैर रस्सी से कसकर बांधे और उनके बीच में एक मजबूत लकड़ी डाल दी। उसके बाद वे उसी लकड़ी के सहारे टट्टू को अपने कंधों पर लादकर आगे बढ़े।

टट्टू इससे कष्ट में पड़ा तो लगा जोर-जोर से चिखने-चिल्लाने।

रास्ते में एक नदी पड़ती थी, जिस पर पुल बना हुआ था। उस समय पुल पर लोगों का अच्छा खासा जमाब था।

जब उन्होंने देखा कि दो आदमी लकड़ी के सहारे जिन्दा टट्टू को अपने कंधे पर लादे चले आ रहे हैं तो वे बहुत चकराए, फिर बस उन्हीं की ओर दौड़ पड़े और लगे जोरों से तालियां पीटने।

लोगों को यह शोर-गुल सुना तो टट्टू और भी भड़का और लगा जान तोड़कर छटपटाने।

आखिर, उसके पैरों में बन्धी हुई रस्सी तड़ाक से टूट गई और वह धम से पुल के नीचे नदी में जा गिरे और गिरते ही मर गया।

बेचारा किसान वहीं पुल मर माथा थामकर बैठ गया और आंसू बहाते-बहाते कहने लगा-हाय-हाय! मैंने तो सबको प्रसन्न रखना चाहा, परन्तु कोई प्रसन्न नहीं हुआ।

उल्टे मुझे ही इतना दुःख उठाना पड़ा और अपने टट्टू से हाथ धोना पड़ा।