किसी आदमी ने एक गदहा और एक बकरा पाल रखा था।
गदहे पर बोझ ढोता था। इसलिए उसे घास दाना, पानी आदि देने का विशेष ध्यान रखता था।
गदहे पर मालिक की विशेष कृपा देखकर बकरा मन ही मन जलता-भुनता रहता था और सोचने लगता था कि गदहे के मालिक को नजर से गिराने के लिए क्या करना चाहिए।
सोच-विचार करते-करते बकरे को समझ में एक उपाय आया।
उसने एक दिन गदहे से कहा-भाई! मालिक ने मुझे तो खुला छोड़ रखा है।
मैं जहाँ चाहता हूँ, वहां जाता हूँ और मनमानी उछल-कूद मचाता हूँ परन्तु मेरी समझ में नहीं आता कि वह तुम्हारे साथ क्यों इतना बुरा व्यवहार करता है।
रोज तुम्हारी पीठ पर बोझ लादता है।
फिर तुम्हें न जाने कहाँ -कहाँ घसीटता पिटता है।
गदहा बोला-मालिक का यह व्यवहार मुझे बहुत अखरता है परन्तु उससे बचने का उपाय क्या है ?
बकरे ने कहा-उपाय ? अरे उपाय तो बहुत सरल है।
एक दिन बीमारी का बहाना बनाओ। किसी गढ़े में गिर पड़ो और फिर मजे से कुछ दिन तक आराम करो। बैठे-बैठे खाओ-पीओ।
गदहा सीधा-सादा तो था ही, बकरे की बातों में आ गया।
उस दिन जान-बूझकर वह गढ़े में आ गिरा।
परिणामस्वरूप इतना घायल हो गया कि कुछ-दिन तक चलने-फिरने के लायक भी न रहा।
आखिर मालिक ने पशुओं के डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने गदहे को देखा और फिर उसके मालिक से कहा -कुछ दिन तक आराम से पड़े रहने दो।
घावों पर बकरे की चर्बी की मालिश करो। धीरे-धीरे अच्छा हो जायेगा।
अब क्या था मालिक ने बकरे को काटने के लिए छुरी उठायी तो वह देखते ही बकरे रोते-रोते कहा हाय-हाय! मेरी बुद्धि को आग लगी थी कि मैंने गदहे के लिए कूल-फरेब से काम लेता है।
वह स्वयं ही चक्कर में फंस जाता है।