“सिद्धांत और व्यवहार में परिवर्तन

गौबुद्ध के जीवन की एक घटना है।

उन्होंने नियम बना रखा था कि वे अपने संघ में स्त्रियों को स्थान नहीं देंगे।

स्त्रियों के लिए भिक्षु होने की दीक्षा उन्होंने वर्जित कर रखी थी।

एक समय गौतम बुद्ध एक गाँव में ठहरे हुए थे। वहाँ महाप्रजापति गौतमी उनके पास पहुँचीं।

उन्होंने बुद्ध से कहा, “आप स्त्रियों को भी दीक्षा दें।'” किंतु बुद्ध ने अस्वीकार कर दिया।

अनेक स्त्रियाँ इकट्ठी हुईं और उन्होंने विचार किया कि कैसे गौतमबुद्ध से स्वीकृति प्राप्त की जाए ?

स्त्रियों ने निर्णय लिया कि स्वयं सेविकाएँ बनकर गौतम बुद्ध के समक्ष पहुँचा जाए।

गौतमी ने अपने बाल काटे, भिक्षु के वस्त्र पहने और अनेक स्त्रियों के साथ बुद्ध के सामने पहुँच गईं।

उनकी यह माँग थी कि स्त्रियों को भी दीक्षा दी जाए। बुद्ध ने उनकी बात को स्वीकार नहीं किया। स्त्रियाँ निराश हुईं।

जब बुद्ध के एक शिष्य आनंद ने स्त्रियों को देखा, उनके पाँव सूजे हुए थे। उन पर धूल चढ़ी हुई थी, उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे।

उन्होंने पूछा, “क्या बात है ?”

स्त्रियों ने कहा, “बुद्ध उनके धर्म और नियम के अनुसार हमें भिक्षु होने की दीक्षा नहीं दे रहे हैं।'' जब आनंद ने व्यक्तिगत रूप से बुद्ध से निवेदन किया।

बुद्ध को उन्होंने याद दिलाया, ''इस समय यह सामाजिक मान्यता है कि स्त्रियाँ मोक्ष की अधिकारी नहीं हैं, पुरुषों के मुकाबले निम्न हैं तो क्या आप भी यह मानते हैं और इसलिए उन्हें दीक्षित नहीं कर रहे हैं ?” बुद्ध का उत्तर था, “मुझे गलत न समझा जाए।

मेरी मान्यता है कि पुरुष की तरह ही स्त्री भी निर्वाण प्राप्त कर सकती है,

लेकिन मैं कुछ व्यावहारिक कारणों से स्त्रियों को संघ में शामिल करने और दीक्षा देने की स्वीकृति प्रदान नहीं कर रहा हूँ।

आनंद का उत्तर था, “सिद्धांत और व्यवहार में परिवर्तन करना चाहिए।”' बुद्ध को बात जँच गई और उन्होंने यह घोषणा की, “जो स्त्रियाँ भिश्लु होना चाहेंगी, उन्हें कुछ नियमों का पालन करना होगा।”

स्त्रियों ने स्वीकार किया और तब से स्त्रियाँ भी बौद्ध बनने लगीं।