गौतम सिद्धार्थ बुद्धत्व प्राप्त करके महात्मा बुद्ध बन गए।
सत्य, अहिंसा और दया की मूर्ति बुद्ध अपने शिष्यों के साथ एक गाँव में पहुँचे।
कुछ अज्ञानी लोग उनके विरोधी थे। वे बुद्ध को अपशब्द कहने लगे। बुद्ध के शिष्यों को बहुत बुरा लगा।
मगर बुद्ध ने उन्हें समझाया, “ये लोग तो केवल अपशब्द ही कह रहे हैं, अगर ये पत्थर भी मार रहे होते तो भी मैं कहता कि मारने दो।
मैं जानता हूँ कि ये लोग कुछ कहना चाहते हैं, लेकिन क्रोध के मारे वह कह नहीं पा रहे हैं।
“दस साल पहले यदि ये ही लोग मुझे गाली देते तो मैं इन्हें भी गाली देता। लेकिन अब तो लेन-देन से मुक्ति मिल चुकी है।
क्रोध से अपशब्द निकलते हैं । यहाँ तो क्रोध भवन कब का ढह चुका है।'” अपशब्द कहनेवाले बड़ी मुश्किल में पड़ गए।
तभी बुद्ध ने अपने शिष्यों से पूछा, '“इस गाँव में कुछ लोग अपशब्द कह रहे हैं। इन्हें बताओ कि वहाँ के लोग फल और मिठाइयाँ लेकर आए थे।'' बुद्ध ने पूछा, “फिर मैंने क्या किया था ?
शिष्यों ने बताया, “ आपने सारे फल और मिठाइयाँ यह कहकर वापस कर दीं कि अब लेनेवाला विदा हो चुका है।इन्हें वापस ले जाओ। आपने कहा था कि दस साल पहले आते तो मैं सारे उपहार ले लेता ।” बुद्ध ने पूछा, “फिर उन लोगों ने मिठाइयों का क्या किया होगा ? शिष्यों ने बताया, गाँव में बाँट दी होगीं।'
बुद्ध बोले, “उन लोगों ने मिठाइयाँ गाँव में बाँट दीं। लेकिन मैं उन लोगों से कहूँगा कि अपशब्द में न बाँटें।
बुद्ध फिर बोले, “ये लोग अपशब्दों के थाल सजाकर लाए हैं । लेकिन ये गलत आदमी के पास आ गए हैं।
ये मुझसे क्रोध नहीं करवा सकते। ठीक खूँटी की तरह, जो किसी को नहीं टाँगती, लोग उस पर वस्त्र टाँग देते हैं।