एक राजा हमेशा उदास रहता था।
लाख कोशिश करने के बावजूद उसे शांति नहीं मिलती थी। एक बार उसके नगर में एक भिक्षु आया।
भिक्षु के ज्ञानपूर्ण उपदेश से राजा बहुत प्रभावित हुआ।
उसने भिक्षु से पूछा में राजा हूँ, मेरे पास सबकुछ है, किंतु फिर भी मेरे मन में शांति नहीं है मुझे क्या करना चाहिए ?
भिक्षु बोला, “आप अकेले में बैठकर चिंतन करें।'' राजा अगले दिन सुबह अपने कक्ष में आसन जमाकर बैठ गया।
तभी उसके महल का एक कर्मचारी सफाई के लिए राजा के पास आया।
राजा उससे बात करने लगा। कर्मचारी से राजा ने उसकी परेशानियाँ पूछीं, जिन्हें सुनकर उसका दिल भर आया।
इसके बाद राजा हर कर्मचारी के कष्ट व दुःख जानने लगा।
सबकी व्यथा सुनने के बाद राजा ने निष्कर्ष निकाला कि वेतन कम होने से सभी आर्थिक रूप से त्रस्त थे।
राजा ने तत्काल उनके वेतन में वृद्धि की, जिससे वे सभी खुश हो गए और उन्होंने राजा के प्रति आभार व्यक्त किया, अगले दिन जब राजा की भिक्षु से भेंट हई, तो उसने पूछा, राजन्!
आपको कुछ शांति प्राप्त हुई ?
राजा बोला, “मुझे पूर्ण रूप से तो शांति नहीं पिली, किंतु जबसे मैंने मनुष्य के दुःखों के स्वरूप को जाना है, अशांति थोड़ी-थोड़ी जाती रही ।
तब भिक्षु ने समझाया, '' राजन्! आपने शांति के मार्ग को खोज लिया है । बस, उस पर आगे बढ़ते जाएँ। एक राजा तभी प्रसन्न रह सकता है, जब उसकी प्रजा सुखी हो।''
सार यह है कि मन की शांति स्वयं के सुख से अधिक दूसरों के दुःख हरकर उन्हें सुखी बनाने से मिलती है, इसलिए यथाशक्ति दूसरों की सहायता करें।