बुद्ध के पास उनका एक शिष्य आया और बौखलाए स्वर में बोला,
जमींदार राम सिंह ने मेरा अपमान किया है।
आप सभी चलें। उसे सबक सिखाना होगा ।
बुद्ध बोले,प्रियवर, सच्चे बौद्ध का अपमान करने की शक्ति किसी में नहीं होती ।
तुम इस बात को भुला दो। जब प्रसंग भुला दोगे तो अपमान कहाँ बचा रहेगा।
शिष्य ने कहा,उसने आपके प्रति भी अपशब्दों का प्रयोग किया था।
आप चलिए तो सही । आपको देखते ही वह शर्मिंदा हो जाएगा और क्षमा माँग लेगा। इससे मैं संतुष्ट हो जाऊँगा।
बुद्ध कुछ विचार कर बोले, “अच्छा यदि ऐसी बात है तो मैं अवश्य ही रामजी के पास चलकर उसे समझाने का प्रयास करूँगा।
शिष्य ने आतुर होकर कहा, चलिए, नहीं तो रात हो जाएगी।
बुद्ध ने कहा, रात आएगी तो क्या! रात के पश्चात दिन भी तो आएगा।
यदि तुम वहाँ चलना आवश्यक ही समझते हो तो मुझे कल याद दिलाना। कल चलेंगे।'
दूसरे दिन बात आई-गई हो गई । शिष्य अपने काम में लग गया और बुद्ध अपनी साधना में लीन हो गए ।
दोपहर होने पर बुद्ध ने शिष्य से पूछा, आज रामजी के पास चलना है ?
शिष्य ने कहा, “नहीं, मैंने जब घटना पर फिर से विचार किया तो मुझे इस बात का आभास हुआ कि भूल मेरी ही थी।
अब रामजी के पास चलने की कोई जरूरत नहीं है । बुद्ध ने मुसकराकर कहा, अगर हम तुरंत प्रतिक्रिया देने से बचें तो हमारे भीतर की कटुता समाप्त हो जाती है।
शिष्य बुद्ध का आशय समझ उनके प्रति नतमस्तक हो गया।