सम्राट्‌ अशोक और बुद्ध

सम्राट्‌ अशोक संपूर्ण भारत को अपने राज्य में मिलाना चाहते थे,

पर कलिंग के युद्ध में हुए रक्तपात को देखकर उन्हें अत्यधिक दुःख पहुँचा ।

उनकी महत्त्वाकांक्षा ने जो तबाही मचाई थी, उसे देखकर उन्हें खुद पर ग्लानि हुई।

उन्होंने देखा कि लोग दर्द से कराह रहे थे। यह सब विनाश केवल उनकी महत्त्वाकांक्षा से हुआ था।

यह सब देखकर अशोक के मन में विनाश का पथ छोड़कर नेकी के रास्ते पर चलने का विचार जगा। अशोक की राजधानी पाटलिपुत्र थी।

पाटलिपुत्र अब पटना के रूप में जाना जाता है। पटना से गया भी अधिक दूर नहीं है, जहाँ बोधिवृक्ष के नीचे महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था।

बुद्ध के अष्टप्रद मार्ग, शांति व दया के संदेश ने अशोक के दिलोदिमाग में इतनी उथल-पुथल पैदा कर दीया कि उन्होंने उस मार्ग को अपनाने का फैसला किया।

इस पथ पर चलने से उन्होंने इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी ।

अशोक ने अपने पुत्र को सिलोन (अब श्रीलंका) और अन्य कई लोगों को सुदूर क्षेत्रों में दूत बनांकर भेजा।

एक निर्दयी महत्त्वाकांक्षा एक ऐसे पवित्र उद्देश्य में बदल चुकी थी, जिसमें कुछ अच्छा कर गुजरने की, करुणा और प्रेम के संदेश को चारों ओर फैलाने की इच्छा थी।

करुणा केवल दया भावना मात्र नहीं है। यह आपके अंदर दूसरों की मदद करने की तीब्र इच्छा पैदा करती है।

इसी भावना ने बुद्ध को भगवान्‌ और अशोक को महान्‌ बनाया।