बुद्ध की एकाग्रता

एक के बार भगवान्‌ बुद्ध एक गाँव के समीप एक शाला में निवास कर रहे थे।

दिन का समय था।

आकाश में घटाएँ घिर रही थीं।

थोड़ी ही देर में मूसलधार बारिश होने लगी।

आस-पास के लोगों में अपने बाहर रखे सामानों को हटाने की हड़बड़ी मच गई।

इसी आपाधापी में कुछ लोग गिर भी गए और उन्हें चोट आई।

तभी जोर से बिजली कड़की और वहीं काम कर रहे दो किसानों एवं चार बैलों को अपनी चपेट में ले लिया।

इन सभी कौ तत्काल मृत्यु हो गई। इस हादसे के कारण वहाँ भारी भीड़ एकत्रित हो गईं।

उस समय भगवान्‌ बुद्ध वहीं शाला के बरामदे में टहल रहे थे। लोगों ने उन्हें घटना के विषय में बताया, तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की।

ग्रामीणों से उनका वार्त्तालाप कुछ ऐसे चला, “'भंते। आप उस समय कहाँ थे?”

बुद्ध बोले, “आयुष्मान्‌! यहीं था।

आपने बादलों को घुमड़ते और बिजली को चमकते देखा? ''

“नहीं देखा।

“भंते। आपने बिजली का किसानों पर गिरना नहीं देखा?

“नहीं देखा।''

“भंते। आप सो गए थे?

“नहीं, मैं जाग रहा था।

“ भंते! आप होश में थे ?''

“हाँ, आयुष्मान्‌! मैं होश में था।''

“तो भंते! आपने होश में जागते हुए न गरजते बादलों को सुना, न बिजली की कड़क सुनी और न उसके गिरने को देखा? ''

“हाँ, आयुष्मान्‌!

गौतम बुद्ध की ऐसी एकाग्रता देख उपस्थित लोग उनके प्रति श्रद्धावनत हो गए।

सार यह है कि लक्ष्य के प्रति एकाग्रता उसकी शीघ्र उपलब्धि का अच्छा साधन है। आज की युवा पीढ़ी एकाग्रता के जरिए अपने बड़े सपनों को जल्दी पूरा कर सकती है।