आनंद भगवान् बुद्ध के प्रमुख व प्रिय शिष्य थे।
उनके स्वभाव में उदारता, स्नेह व सहिष्णुता जैसे गुण शामिल थे।
वे सभी के प्रति समान व्यवहार करते थे। उनकी दृष्टि में कोई छोटा या बड़ा नहीं था।
एक बार आनंद कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्हें बड़े जोर की प्यास लगी।
आस- पास देखा तो निकट ही कुआँ दिखाई दिया।
वे वहाँ पहुँचे। कुएँ से एक लड़की पानी भर रही थी।
आनंद ने उसके पास जाकर कहा, “बहन! मैं बड़ी दूर से आ रहा हूँ ।
मुझे बहुत जोर से प्यास लगी है । कृपाकर पानी पिला दो।'' उनकी बात सुनते ही लड़की काँप उठी, क्योंकि वह अछूत जाति की थी।
वह जानती थी कि किसी ऊँची जाति के व्यक्ति को पानी पिलाना उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है । वह निगाह नीची कर चुपचाप खड़ी रही।
आनंद ने प्यास से व्याकुल होकर फिर कहा, “बहन! तुमने सुना नहीं। प्यास के मारे मेरे प्राण निकले जा रहे हैं । मुझे पानी पिला दो।'” लड़की भयवश कुछ नहीं बोल पाई ।
जब आनंद ने बड़े स्नेह से उससे पानी न पिलाने का कारण पूछा, तो वह बोली, “मैं निम्न जाति की कन्या हूँ।
आपको पानी कैसे पिला सकती हूँ?” उसकी बात सुनकर आनंद ने कहा, '“बहन! मैंने तुमसे पानी माँगा है, जाति तो नहीं पूछी ।
आनंद की उदारता ने उस कन्या का भय दूर कर दिया और उन्हें पानी पिलाकर वह धन्य हो गई।
कथा का सार यह है कि ईश्वर की दृष्टि सम होने के कारण उसने सभी मनुष्यों को समान शरीर, बुद्धि और भावना से नवाजा है।
अत: अपने सृष्टिकर्ता के विरुद्ध जाकर मानव-मानव में भेद करना सर्वथा अनुचित है।