शिष्य को अनूठी सीख दी

महात्मा बुद्ध के सभी शिष्यों की कोशिश यही रहती थी कि उनके सिद्धांतों को यथाशक्ति आचरण में उतार लें।

साथ रहनेवाले शिष्य परस्पर एक-दूसरे के आचरण पर दृष्टि रखते थे और एक के द्वारा कोई भूल होने पर दूसरा उसे टोक देता था।

एक दिन बुद्ध के दो शिष्य नालंदा से पाटलिपुत्र आ रहे थे, जहाँ बुद्ध रुके थे।

पूरे दिन के सफर में दोनों चलते- चलते थक गए।

रास्ते में नदी दिखी, तो पानी पीकर थोड़ा सुस्ताने लगे।

तभी उन्होंने देखा कि एक स्त्री पानी में डूब रही है।

बौद्ध भिक्षुओं के लिए स्त्री का स्पर्श वर्जित माना जाता है, अतः एक ने कहा, “हमें धर्म की मर्यादा का पालन करना चाहिए।

लेकिन दूसरा बोला, मेरी आँखों के सामने कोई मर जाए और मैं कुछ न करूँ, यह असंभव है।

यह कहते हुए वह पानी में कूढ पड़ा और स्त्री को कंधे पर उठाकर बाहर ले आया। दोनों को यात्रा फिर शुरू हो गई।

रास्ते भर पहले भिश्लु ने दूसरे की खूब निंदा को। बुद्ध के सामने पहुँचने पर पहले भिक्षु ने पूरी बात सुनाते हुए कहा, “ भंते।

इसे मैंने काफी रोका, किंतु यह इस भीषण पाप को करने में तनिक नहीं हिचकिचाया।” बुद्ध ने उसकी पूरी बात सुन शांतिपूर्वक पूछा, '“इसे स्त्री को कंधे पर बाहर लाने में कितना समय लगा होगा ?

उसने जवाब दिया, “पंद्रह मिनट ।”' फिर बुद्ध ने पूछा, “उसके बाद तुम लोगों को यहाँ आने में कितना समय लगा ?” उत्तर मिला, “यही कोई छह घंटे।

तब बुद्ध ने उसे समझाया, “इसने तो उस स्त्री को पंद्रह मिनट ही कंधे पर रखा, लेकिन तुम तो उसे छह घंटे से अपने ऊपर बिठाए हुए हो।

अब बताओ तुम दोनों में बड़ा पापी कौन है ? उस भिक्षु ने अपनी गलती जान लज्जा से सिर झुका लिया।

सार यह है कि सदैव सद्विचारों और खुली सोच को प्रश्नय देना चाहिए।