गाँव का उद्धार हुआ

बुद्ध की शिक्षा से गाँव का उद्धार हुआ

एक युवक ने बुद्ध से आकर कहा, “मेरा गाँव अशिक्षित है। मैं अपने परिवार से झगड़कर थोड़ा-बहुत पढ़ पाया हूँ ।

आगे और पढ़ना चाहता हूँ, किंतु सभी रोक रहे हैं । घर के लोग सोचते हैं कि खेती में खूब पैसा है और उसके लिए किसी शिक्षा की आवश्यकता नहीं है ।

यही सोच गाँववालों की भी है। कृपया आप मेरे गाँव चलकर वहाँ शिक्षा का प्रसार करवाइए! बुद्ध युवक की बात मानकर गाँव आ गए।

धर्म भीरु ग्रामीणों ने बुद्ध का सत्कार किया और रोज उनके प्रवचन सुनने आने लगे।

बुद्ध जब भी शिक्षा का महत्त्व बताते, ग्रामीण विरोधी मत रखते। एक दिन एक महिला अपने पाँच साल के बच्चे के लिए पूछने लगी कि उसे किस उम्र से शिक्षा दिलवाएँ ?

तब बुद्ध ने समझाया कि तुम्हें तो पाँच वर्ष पूर्व उसकी शिक्षा शुरू कर देनी थी। उसे क्या खाना है, क्या नहीं, कैसे व क्या बोलना है आदि बातें शुरू से सिखाओगी, तभी तो वह अपना उचित खयाल रख सकेगा।

बुद्ध की यह बात महिला सहित सभी ग्रामीणों को समझ में आ गई ।

उन्होंने अपने बच्चों को विद्यालय भेजना शुरू किया। यह समय वर्षा का था।

युवक ने लोगों को जल संग्रहण की तकनीक बताई।

अधिकांश ने उपहास किया, किंतु युवक अपना काम करता रहा।

बुद्ध का सहयोग प्राप्त था, इसलिए किसी ने उसका खुलकर विरोध नहीं किया।

जब गरमी में भीषण जलसंकट के कारण फसलें सूखने लगीं, तो युवक ने कुएँ खुदवाए, जिनमें जल संग्रहण की तकनीक के कारण खूब पानी निकला। ग्रामीण अब शिक्षा का महत्त्व समझ चुके थे।

धीरे-धीरे संपूर्ण गाँव शिक्षित हो गया।

ज्ञान हर उम्र में अर्जित किया जा सकता है। यही ज्ञान हमें जीवन में आने वाली समस्याओं के समाधान की राह सुझाता है।