एक गाँव में दो भाई रहते थे, जो अपनी शैतानियों के लिए कुख्यात थे।
उन्हें दूसरों को परेशान करने में बड़ा आनंद आता था।
वे हर समय किसी-न-किसी को परेशान करने में लगे रहते थे।
गाँव के लोगों के साथ- साथ उनके माता-पिता भी उनकी ऐसी हरकतों के कारण बहुत दु:खी थे।
जब गाँव का कोई व्यक्ति उनके माता-पिता के पास उनकी शिकायत लेकर आता तो वे दोनों को बहुत समझाते, किंतु दोनों भाइयों के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगती ।
एक दिन उनकी माँ गाँव में आए हुए महात्मा बुद्ध के पास गई और अपने बच्चों में किसी भी तरह ईश्वर का भय भर देने का आग्रह किया, ताकि वे लोग शैतानी से बाज आएँ।
महात्मा बुद्ध ने माँ से दोनों को एक- एक करके उनके पास भेजने को कहा।
माँ ने अपने पहले लड़के को महात्मा बुद्ध के पास भेजा ।
वह जाकर महात्मा बुद्ध के पास बैठ गया। महात्मा बुद्ध ने उससे पूछा, “ईश्वर कहाँ है ?
लड़के की कुछ समझ में नहीं आया और उसने कोई उत्तर नहीं दिया,
तब महात्मा बुद्ध ने दोबारा यही सवाल कड़ककर पूछा तो डर के मारे लड़का वहाँ से तेजी से भागा और भागते हुए अपने भाई के पास जा पहुँचा तथा बोला,
भाई, तुम्हें पता है, ईश्वर खो गया है और सब लोग इसके लिए हमें ही जिम्मेदार समझ रहे हैं ।
छोटा भाई भी इतना बड़ा आरोप सुनकर डर गया और उस दिन से दोनों ने शैतानी करना छोड़ दिया।
कथा का सार यह है कि जब सीधे मार्ग से सुधार की राह न मिले तो टेढ़े मार्ग का सहारा लेना ही सर्वथा उचित है।