एक दिन एक शिक्षित युवक बुद्ध के पास आया।
उसने बुद्ध को प्रणाम कर अपनी जिज्ञासा रखी, “गुरुजी ! आप ईश्वर की बात करते हैं ।
क्या आपने ईश्वर के दर्शन किए हैं, जो आप साधिकार इस विषय पर इतना कुछ कह पाते हैं ?
बुद्ध ने कुछ नहीं कहा और स्नेहपूर्वक उसके सिर पर हाथ फेर दिया।
युवक ने समझा कि बुद्ध के पास मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं है ।
फिर उन्होंने कहा, आओ, हम कुछ देर यहाँ के बगीचे में घूमें ।” बगीचे में गुलाब और रजनीगंधा के सुगंधित फूल लगे थे।
युवक बोला, “' गुरुजी ! इन फूलों की सुगंध से सारा वातावरण महक रहा है।'' बुद्ध ने कहा, '“वत्स.! तुम ठीक कहते हो, किंतु एक बात बताओ कि यह सुगंध तुम्हें दिखाई दे रही है ?
युवक बोला, “जी, नहीं सुगंध तो अनुभव की जाती है।'” तब बुद्ध ने कहा, बस, यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है ।
तुम्हारे शरीर में जब कभी कहीं चोट लगती है, तो दर्द होता है।
क्या इस दर्द को तुम देख सकते हो? युवक बोला, “नहीं, वह भी अनुभूत ही होता है।
बुद्ध ने अंतिम रूप से युवक का समाधान करते हुए कहा, “आत्मा और परमात्मा के साथ भी यही बात है।
आत्मा को परमात्मा की अनुभूति के द्वारा उसका साक्षात्कार होता है, न कि स्थूल नेत्रों से । युवक अब पूर्णतः संतुष्ट था।
बुद्ध का आभार मानते हुए वह चला गया।
परमात्मा सदैव अनुभूति के स्तर पर ही घटता है और यह घटना तब होती है, जब मन पूर्णत: निर्लिप्त तथा समभाव को प्राप्त हो चुका हो।