ज्ञान की सार्थकता

एक व्यक्ति बुद्ध के पास गया और बोला कि गुरुदेव मुझे जीवन के सत्य का पूर्ण ज्ञान है,

फिर भी मेरा मन किसी काम में नहीं लगता ।

इस अस्थिरता का क्या कारण हैं ?

बुद्ध ने उसे रात तक इंतजार करने के लिए कहा।

रात होने पर वे उसे झील के पास ले गए और झील में चाँद का प्रतिबिंब दिखाकर बोले कि एक चाँद आकाश में और एक झील में, तुम्हारा मन इस झील को तरह है।

तुम्हारे पास ज्ञान तो है, लेकिन तुम उसे इस्तेमाल करने की बजाय मन में लेकर बैठे हो, ठीक वैसे जैसे झील चाँद का प्रतिबिंब लेकर बैठी है।

तुम्हारा ज्ञान तभी सार्थक होगा, जब तुम उसे व्यवहार में एकाग्रता व संयम के साथ अपनाने की कोशिश करो ।

झील का चाँद तो भ्रम है, तुम्हें अपने काम में मन लगाने के लिए आकाश के चंद्रमा की तरह बनना है, झील का चाँद तो पानी में पत्थर गिराने पर हिलने लगता है, जैसे तुम्हारा मन जरा-जरा-सी बात पर डोलने लगता है।

तुम्हें अपने ज्ञान और विवेक को जीवन में नियमपूर्वक लाना होगा तथा अपने जीवन को सार्थक एवं लक्ष्य हासिल करने में लगाना होगा।

खुद को आकाश के चाँद के बराबर बनाओ। शुरू में थोड़ी परेशानी आएगी, पर कुछ समय बाद ही तुम्हें दूसरी आहट हो जाएगी।

उस व्यक्ति की समस्या दूर हो गई।

वह बहुत प्रसन्‍न हुआ। उसने महात्मा बुद्ध के चरण स्पर्श करते हुए कृतज्ञता व्यक्ति की।