एक बार एक व्यक्ति भगवान् बुद्ध के पास आया और उसने बताया कि उसका एकमात्र पुत्र आकस्मिक मृत्यु को प्राप्त हुआ।
तभी से उसके शोक में न वह ठीक से सो पाता और न खाता-पीता है ।
बस, एक ही आशा में उसका जीवन बचा हुआ है कि कहीं से उसका पुत्र फिर से आ जाएगा।
उसकी व्यथा सुनकर बुद्ध बोले, “लगाव से दुःख ही होता है।'” उस व्यक्ति ने असहमति जताते हुए कहा कि आप गलत कह रहे हैं।
लगाव से कष्ट नहीं होता। वह तो प्रसन्नता और आनंद देता है। बुद्ध कुछ और कहते, इसके पहले वह वहाँ से चला गया ।
यह बात सार्वजनिक बहस बनकर राजा प्रसेनजित तक पहुँची।
उन्होंने रानी के समक्ष हुई बातचीत में बुद्ध को गलत ठहराया।
रानी बुद्ध की बात का मर्म जानती थीं, इसलिए उन्होंने बुद्ध के द्वारा अपनी बात के समर्थन में सुनाई गईं दो घटनाएँ राजा को बताते हुए कहा,
“महाराज! श्रावस्ती में हाल ही में एक महिला माँ की मृत्यु होने से दुःख में पागल हो गई।दो प्रेमियों ने लड़की का विवाह किसी ओर से हो जाने पर आत्महत्या कर ली।
इससे यही प्रकट होता है कि लगाव से दुःख होता है। क्या आप राजकुमारी को प्रेम करते हैं ?
राजा चकित होकर बोले, '' अवश्य ही करता हूँ।
रानी ने प्रश्न किया, “यदि वह किसी दुर्घटना का शिकार हो जाए तो क्या आपको दुःख न होगा ?
' राजा ने स्वीकार किया कि उन्हें दुःख होगा।
अब वे बुद्ध की बात से पूर्णत: सहमत हुए।
वस्तुत: लगाव या प्रेम आनंद देता है, किंतु अनुकूल परिस्थितियों में यह संभव होता है ।
प्रिय पात्र के अभाव या उसे कष्ट में देख यह प्रेम दु:ख में परिणत होकर तकलीफ देता है । इसलिए अपने प्रेम को संयम की लगाम से कस कर रखें।