सम्यक्‌-ज्ञान

  1. मोह से भरा हुआ संसार एक सपने की तरह है, यह तब तक ही सच लगता है, जब तक आप अज्ञान की नींद में सो रहे होते हैं। जब नींद खुलती है तो इसकी कोई सत्ता नहीं रह जाती है।

  2. जिस तरह एक प्रज्वलित दीपक को चमकने के लिए दीपक की जरूरत नहीं होती है। उसी तरह आत्मा, जो खुद ज्ञान स्वरूप है, उसे और किसी ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है, अपने खुद के ज्ञान के लिए।

  3. तीर्थ करने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है। सबसे अच्छा और बड़ा तीर्थ आपका अपना मन है, जिसे विशेष रूप से शुद्ध किया गया हो।

  4. जब मन में सच जानने की जिज्ञासा पैदा हो जाए, तो दुनियावी चीजें अर्थहीन लगती हैं।

  5. हर व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि आत्मा एक राजा के समान होता है जो शरीर, इंद्रियों, मन, बुद्धि से बिल्कुल अलग होता है। आत्मा इन सबका साक्षी स्वरूप है।

  6. अज्ञान के कारण आत्मा सीमित लगता है, लेकिन जब अज्ञान का अँधेरा मिट जाता है, तब आत्मा के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हो जाता है, जैसे बादलों के हट जाने पर सूर्य दिखाई देने लगता है।

  7. धर्म की किताबें पढ़ने का उस वक्‍त तक कोई मतलब नहीं, जब तक आप सच का पता न लगा पाएँ। उसी तरह से अगर आप सच जानते हैं तो धर्मग्रंथ पढ़ने की कोई जरूरत नहीं है। सत्य की राह पर चलें।

  8. आनंद तभी मिलता है, जब आनंद की तलाश नहीं कर रहे होते हैं।

  9. एक सच यह भी है कि लोग आपको उसी वक्‍त तक याद करते हैं जब तक साँस चलती है। साँस के रुकते ही सबसे करीबी रिश्तेदार, दोस्त, यहाँ तक की पत्नी भी दूर चली जाती है।

  10. आत्मसंयम क्या है? आँखों को दुनियावी चीजों की ओर आकर्षित न होने देना और बाहरी ताकतों को खुद से दूर रखना।

  11. सत्य की कोई भाषा नहीं है। भाषा सिर्फ मनुष्य का निर्माण है, लेकिन सत्य मनुष्य का निर्माण नहीं, आविष्कार है। सत्य को बनाना या प्रमाणित नहीं करना पड़ता, सिर्फ उघाड़ना पड़ता है।

  12. सत्य की परिभाषा क्या है? सत्य की इतनी ही परिभाषा है कि जो सदा था, जो सदा है और जो सदा रहेगा।