एक दिन महात्मा बुद्ध के पास तीन युवक आए।
वे उनके साथ कुछ दिन रहना चाहते थे।
बुद्ध ने प्रश्न किया कि तुम यहाँ क्यों आए हो ?
पहले ने कहा, “बस रहने आया हूँ।'' बुद्ध बोले कि रहने में तो कोई परेशानी नहीं है। दूसरे का उत्तर था, “कुछ जानने आया हूँ।'' बुद्ध ने उसे समझाया कुछ जानने के लिए बुद्धि को शुद्ध और मन को समर्पण के योग्य बनाना पड़ेगा।
जिसे हम जानना कहते हैं, अधिकांश अवसरों पर वह मात्र जानकारी होती है। यह हमारा भ्रम होता है कि हमने जान लिया।
चित्त को एकाग्र किए बिना जो जाना जाता है, वह परमात्मा न होकर हमारा अहंकर होता है। इससे ऊपर उठकर ही हम परमात्मा को देख सकते हैं।
तुम मेरे पास रहो या कहीं और रहो, मन का समर्पण और एकाग्रता का होना बहुत जरूरी है।
फिर बुद्ध ने तीसरे युवक से पूछा तो उसने कहा कि मैं जीने के लिए यहाँ पर आया हूँ।
तब बुद्ध ने कहा कि रहना और जानना इन दोनों से ऊपर की स्थिति है-- जीना। जीवन बिताना सरल है, किंतु जीना कठिन है।
जीवन को जीने के लिए परमात्मा की अनुभूति आवश्यक है।
तीनों युवक बुद्ध की बातों का मर्म जान गए और उनकी बताई राह पर चल पड़े ।
वस्तुत: स्वयं को परमात्मा का अंश मानकर प्रत्येक कर्म को उन्हें समर्पित करना ही सही अर्थो में जीवन को सही-सही जीना होगा।