धन्ना सेठ के पास सात पुश्तों के पालन-पोषण जितना धन था।
उसका व्यापार चारों तरफ फैला हुआ था, किंतु फिर भी उसका मन अशांत रहता था।
कभी धन की सुरक्षा की चिंता, तो कभी व्यापारिक प्रतिस्पर्धा में आगे निकलने का तनाव।
चिंता और तनाव के कारण वह अस्वस्थ रहने लगा।
उसके मित्र ने उसकी गिरती दशा देखी, तो उसे बुद्ध के पास जाने की सलाह दी।
सेठ बुद्ध के पास पहुँचा और अपनी समस्या बताई।
बुद्ध ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, “तुम घबराओ मत।
तुम्हारा कष्ट अवश्य दूर होगा।
बस, तुम यहाँ कुछ दिन रहकर ध्यान किया करो।
बुद्ध के कहे अनुसार सेठ ने रोज ध्यान करना शुरू कर दिया, किंतु सेठ का मन ध्यान में नहीं लगा।
वह जैसे ही ध्यान करने बैठता, उसका मन फिर अपनी दुनिया में चला जाता।
उसने बुद्ध को यह बात बताई, किंतु बुद्ध ने कोई उपाय नहीं बताया।
थोड़ी देर बाद जब सेठ बुद्ध के साथ वन में सायंकालीन भ्रमण कर रहा था, तो उसके पैर में एक काँटा चुभ गया।
वह दर्द के मारे कराहने लगा।
बुद्ध ने कहा, “बेहतर होगा कि तुम जी कड़ा कर काँटे को निकाल दो, तब इस दर्द से मुक्ति मिल जाएगी।''
सेठ ने मन कड़ा कर काँटा निकाल दिया। उसे चैन मिल गया।
तब बुद्ध ने उसे समझाया, ''ऐसे ही लोभ, मोह, क्रोध, घमंड व द्वेष के काँटे तुम्हारे मन में गड़े हैं।
जब तक अपने मन की संकल्प शक्ति से उन्हें नहीं निकालोगे, अशांत ही रहोगे।''
सेठ का अज्ञान बुद्ध के इन शब्दों से दूर हो गया और उसने निर्मल हृदय की राह पकड़ ली।
अपनी कुप्रवृत्तियों से मुक्ति के लिए संकल्पबद्धता अनिवार्य है।
जब तक व्यक्ति दृढ़-निश्चय न कर ले, वह अपनी गलत आदतों से मुक्त नहीं हो सकता।