एक बार गौतम बुद्ध घूमते हुए एक नदी के किनारे पहुंचे।
वहां उन्होंने देखा कि एक मछुआरा जाल बिछाता और उसमें मछलियां फंसने पर उन्हें किनारे रख दोबारा जाल डाल देता।
मछलियां पानी के बिना तड़पती हुई मर जातीं।
बुद्ध यह देखकर द्रवित हो गए और मछुआरे के पास जाकर बोले, 'भैया, तुम इन निर्दोष मछलियों को क्यों पकड़ रहे हो ?'
मछुआरा बुद्ध की ओर देखकर बोला, 'महाराज, मैं इन्हें पकड़कर बाजार में बेचूंगा और धन कमाऊंगा।'
बुद्ध बोले, 'तुम मुझसे इनके दाम ले लो और इन मछलियों को छोड़ दो।'
मछुआरा यह सुनकर खुश हो गया और उसने बुद्ध से उन मछलियों का मूल्य लेकर मछलियां बुद्ध को सौंप दीं।
बुद्ध ने जल्दी से वे सभी तड़पती हुई मछलियां वापस नदी में डाल दीं।
यह देखकर मछुआरा दंग रह गया और बोला, 'महाराज, आपने तो मुझसे मछलियां खरीदी थीं। फिर आपने इन्हें वापस पानी में क्यों डाल दिया ?'
यह सुनकर बुद्ध ने कहा, 'ये मैंने तुमसे इसलिए खरीदी हैं ताकि इनको दोबारा जीवन दे सकूं। किसी की हत्या करना पाप है। यदि मैं तुम्हारा ही गला घोंटने लगूं तो तुम्हें कैसा लगेगा?' यह सुनकर मछुआरा हैरानी से बुद्ध की ओर देखने लगा।
बुद्ध बोले, 'जिस तरह मानव को हवा और पानी मिलना बंद हो जाए तो वह तड़प-तड़प कर मर जाएगा उसी तरह मछलियां भी यदि पानी से बाहर आ जाएं तो तड़प-तड़प कर मर जाती हैं। उनमें भी सांस है।
उनको तड़पते देखकर तुम कठोर कैसे रह सकते हो ?'
बुद्ध की बातें सुनकर मछुआरा लज्जित हो गया और बोला, 'महाराज, आज आपने मेरी आंखें खोल दीं।
अभी तक मुझे यह काम उचित लगता था पर अब लगता है कि इससे भी अच्छे काम करके मैं अपनी आजीविका चला सकता हूं।
मैं चित्र भी बनाता हूं। आज से मैं चित्रकला से ही अपनी आजीविका कमाऊंगा।' इसके बाद वह वहां से चला गया और कुछ ही समय में प्रसिद्ध चित्रकार बन गया।