भगवान बुद्ध आत्मज्ञान की खोज में तपस्या कर रहे थे।
उनके मन में विभिन्न प्रकार के प्रश्न उमड़ रहे थे। उन्हें प्रश्नों का उत्तर चाहिए था लेकिन अनेक प्रयासों के बाद भी उन्हें सफलता नहीं मिली।
वे आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या करने लगे। अनेक कष्ट सहन किए, कई स्थानों की यात्राएं कीं परंतु जो समाधान उन्हें चाहिए था, वह उन्हें मिला नहीं।
एक दिन उनके मन में कुछ निराशा का संचार हुआ।
सोचने लगे, धन, माया, मोह और संसार की समस्त वस्तुओं का भी त्याग कर दिया।
फिर भी आत्मज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई। क्या मैं कभी आत्मज्ञान प्राप्त कर सकूंगा ? मुझे आगे क्या करना चाहिए ?
इसी प्रकार के अनेक प्रश्न बुद्ध के मन में उठ रहे थे। तपस्या में सफलता की कोई किरण दिखाई नहीं दे रही थी और इधर बुद्ध ने प्रयासों में कोई कमी नहीं छोड़ी थी।
वे उदास मन से इन्हीं प्रश्नों पर मंथन कर रहे थे।
इसी दौरान उन्हें प्यास लगी। वे अपने आसन से उठे और जल पीने के लिए सरोवर के पास गए। वहां उन्होंने एक अद्भुत दृश्य देखा।
एक गिलहरी मुंह में कोई फल लिए सरोवर के पास आई।
फल उससे छूटकर सरोवर में गिर गया। गिलहरी ने देखा, फल पानी की गहराई में जा रहा है।
गिलहरी ने पानी में छलांग लगी दी। उसने अपना शरीर पानी मे भिगोया और बाहर आ गई।
बाहर आकर उसने अपने शरीर पर लगा पानी झाड़ दिया और पुनः सरोवर में कूद गई।
उसने यह क्रम जारी रखा। बुद्ध उसे देख रहे थे लेकिन गिलहरी इस बात से अनजान थी। वह लगातार अपने काम में जुटी रही।
बुद्ध सोचने लगे, ये कैसी गिलहरी है! सरोवर का जल यह कभी नहीं सुखा सकेगी लेकिन इसने हिम्मत नहीं हारी।
यह पूरी शक्ति लगाकर सरोवर को खाली करने में जुटी है।
अचानक बुद्ध के मन में एक विचार का उदय हुआ- यह तो गिलहरी है, फिर भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में जुटी है।
मैं तो मनुष्य हूं। आत्मज्ञान प्राप्त नहीं हुआ तो मन में निराशा के भाव आने लगे। मैं पुनः तपस्या में जुट जाऊंगा।
इस प्रकार महात्मा बुद्ध ने गिलहरी से भी शिक्षा प्राप्त की और तपस्या में जुट गए।
एक दिन उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हो गया और वे भगवान बुद्ध हो गए।