नसरुद्दीन खोजा के मुल्क का बादशाह खोजा की खिल्ली उड़ाने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देता था।
ठीक यही हाल स्वयं खोजा का भी था। उसे जब भी मौका मिलता, बादशाह की खिल्ली उड़ाने का वह उसे कभी खराब नहीं जाने देता था।
खोजा को ऐसे मौके कुछ ज्यादा ही मिलते थे, क्योंकि बादशाह जो था, वह अक्सर ही किसी की फरियाद सुनते समय ऐसे नतीजे पर पहुंचता था, जिसे सुनकर पूरे दरबार का मन होता कि सब खिलखिला कर हंसे, लेकिन जहां और लोग बादशाह की नाराजगी के दर से मन ही मन मुस्कराकर रह जाते वहीं खोजा खुलकर बादशाह को यह बताने से नहीं चुकता था कि उसने कितना ऊल-जजूल फैसला सुनाया है ?
एक दिन बादशाह दरबार में किसी शिकारी की फरियाद सुन रहा था।
शिकारी अपने किसी कारनामे को बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रहा था। अपनी बात को मजबूती देने के लिए उसने कहा, बादशाह सलामत। मेरी बात पर यदि आपको यकीन न हो तो आप नसरुद्दीन खोजा से पूछ सकते हैं।
खोजा एक आला दर्जे का शिकारी है। वे जरूर बता सकेंगे कि मेरे दावे में कितना दम है।
इतना सुनना था कि बादशाह ने शिकारी के मामले को वहीं मुल्तवी कर दिया। वह बोला ठीक है। पहले हम नसरुद्दीन खोजा के साथ शिकार पर जायेंगे।
हम देखना चाहते हैं कि खोजा आला दर्जे का शिकारी है भी या नहीं। और यह भी कि तुम्हारी इस बात में कितनी सच्चाई है ? उसके बाद ही हम तुम्हारे दावों पर यकीन करेंगे।
इस फैसले के बाद बादशाह ने तुरंत ही शिकार पर जाने का ऐलान कर दिया और खोजा से कहा कि वह भी उसके साथ शिकार पर चले।
दोनों अपने कुछ वजीरों और नौकरों के साथ शिकार करने चल पड़े। रस्ते में उन्हें दूर से एक पेड़ दिखाई दिया।
बादशाह ने खोजा को पेड़ का निशाना बना तीर चलाने को कहा। खोजा ने तीर चलाया लेकिन वह निशाना चूक गया। बादशाह खिल-खिला कर हंस पड़ा।
खोजा बोला, यह हंसने की बात नहीं है, जहाँपनाह यह तो मैं आपकी तीरंदाजी की नकल कर रहा था।
ऐसा कहकर उसने फिर एक तीर चलाया लेकिन वह निशाना भी चूक गया। बादशाह फिर से एक बार जोर से हंस पड़ा।
खोजा बोला, यह हंसने की बात नहीं है, जहाँपनाह। यह तो मैं वजीरों की तीरंदाजी की नकल कर रहा था।
उसने तीसरी बार तीर चलाया और वह निशाने पर बैठ गया। देखा जहाँपनाह! यह मेरी तीरदांजी है। नसरुद्दीन खोजा की तीरंदाजी। खोजा ने गर्व से कहा।