एक बार खोजा शिकार खेलने जंगल में गया। वहां और कोई तो शिकार करने योग्य जानवर मिला नहीं, एक पहाड़ी बकरी जरूर उसके हत्थे चढ़ गई।
खोजा उसका शिकार कर घर ले आया। पत्नी ने बकरी का गोश्त एक देगची में पकाया।
खोजा ने अपने कुछ इष्ट मित्रों को दावत दी। सबने मिलकर पहाड़ी बकरी का गोश्त खाया। सभी दोस्त खोजा की तीरंदाजी और मेहमाननवाजी की प्रशंसा करते हुए वहाँ से विदा हो गये।
दूसरे दिन कुछ आवारा किस्म के नौजवान खोजा के घर पहुंचे और उससे बोले, खोजा भाई! हम तुम्हारे दोस्त के दोस्त हैं। सुना है तुम एक पहाड़ी बकरी मार कर घर लाए हो। उसका लजीज गोश्त हमें नहीं खिलाओगे ?
खोजा उन नौजवानों की बात सुनकर समझ गया कि ये लोग मुझे हैरान करने के लिए यहां आये हैं।
पहले तो उसने यही सोचा कि इनके मुंह लगाना ठीक नहीं है। इन्हें विदा कर देने में ही भलाई है। फिर उसे लगा कि नहीं, यदि मैंने इनसे कहा कि कुछ नहीं बचा तो ये लोग किसी और चीज की मांग कर सकते हैं।
इसलिए मना करने का कोई बहाना बनाने की बजाय खोजा मुस्कराते हुए बोला, बहुत अच्छा! आओ बैठो।
फिर खोजा ने बकरी की बची-ख़ुशी हड्डियों को देगची में डालकर उबाला और प्रत्येक को एक-एक कटोरा शोरबा थमा कर बोला लो पियो! यह गर्मागर्म शोरबा पियो।
यह किस चीज का शोरबा, खोजा ? उन्होंने पूछा।
तुम लोग मेरे दोस्त हो, इसलिए मैं तुम्हें बकरी के मांस के शोरबे का शोरबा पीला रहा हूँ। खोजा ने कहा।
तीसरे दिन दूर से कुछ अजनबी घुड़सवार खोजा के पास आए और अपना परिचय स्वयं देते हुए बोले, खोजा से बोले, खोजा! हम सब तुम्हारे दोस्त के दोस्त हैं।
सुना है तुमने एक मोटी-ताज़ी पहाड़ी बकरी का शिकार किया है, उम्मीद है हमारी खातिर करने में कंसुजी नहीं करोगे।
खोजा ने तुरंत जान लिया कि ये भी मान न मान, मैं तेरा मेहमान वाले दर्जे के लोग हैं। इनसे निपटने का वही तरीका अपनाना ठीक रहेगा जो कल वाले नौजवानों पर अपनाया था।
अगले ही पल खोजा ने उन सभी को अपने कमरे में बैठा लिया फिर एक बड़े-से तसले में गंदा पानी भरकर उनके सामने रख दिया।
प्रत्येक के कटोरे में एक-एक करछी गंदा पानी डालकर उसने उनके सामने रख दिया। फिर बोला, तुम लोग मेरे माननीय मेहमान हो, मेरे दोस्त के दोस्त हो।
इसलिए मैं तुम्हें बकड़ी के गोश्त का शोरबा पिला रहा हूँ। यह कहावत तो तुमने सुनी ही होगी कि जैसा देव, वैसी पूजा।