एक बार एक इमाम तालाब के किनारे हाथ-पैर धो रहा था। अचानक उसका पैर फिसल गया और वह तालाब में गिर पड़ा। इमाम का गिरना था कि तालाब के किनारे खड़े लोग उसे बचाने का उपाय करने लगे।
एक आदमी ने अपना हाथ इमाम की ओर बढ़ाते हुए कहा, इमाम साहब! अपना हाथ मुझे दे दीजिए, मैं आपको बाहर खींच लूंगा।
वह यही बात बार-बार दोहराता रहा। पहले थोड़ी धीमी आवाज में फिर जोर-जोर से चिल्लाकर। वह बेचारा लगातार एक ही बात दोहराता रहा, लेकिन इमाम ने उसका हाथ नहीं थामा।
इमाम तालाब में डूबता-उतरता रहा। पानी से बाहर आने के लिए हाथ-पैर मारता रहा, बचाओ-बचाओ चिल्लाता रहा, लेकिन उसने भूलकर भी उस मददगार के हाथ थामने के न तो लक्षण दिखाये और न उसकी तरफ एक बार भी देखा तक।
तब लोगों ने सोचा कि इमाम बुद्धिमान आदमी है। उसे ऐसा लग रहा होगा कि जो आदमी उसकी तरफ अपना हाथ बढ़ा रहा है और उन्हें अपना हाथ देने को कह रहा है, वह इतना कमजोर है कि वह इमाम को तो क्या बाहर निकालेगा, इस चक्कर में स्वयं भी तालाब में जा गिरेगा।
तब और लोगों ने उस आदमी की तरह जोर-जोर से यह बोलना शुरू कर दिया कि इमाम साहब अपना हाथ मुझे दे दीजिये, मैं आपको बाहर खींच लूंगा।
सब लोगों को यह उम्मीद थी की इमाम साहब अपने आप तय कर लेंगे कि उन्हें किसकी तरफ हाथ बढ़ाना चाहिए। लेकिन हैरानी की बात कि इमाम ने किसी भी आदमी की तरफ अपना हाथ नहीं बढ़ाया।
लोगों ने इसे इमाम की घबराहट समझा। उन्हें यकीन हो चला कि इमाम इसी तरह कुछ देर और असमंजस में रहे तो फिर उन्हें डूबने से कोई नहीं बचा सकेगा।
तभी घूमता-घामता खोजा वहां आ पहुंचा। खोजा पर नजर पड़ते ही सब लोगों ने मिलकर उससे विनती की कि वह किसी तरह इमाम को बचा ले।
दूर से ही लोगों की चिल्लाहट सुनकर खोजा यह जान चूका था कि इमाम को बचाने के लिए अब तक क्या उपाय किये जा चुके हैं।
सबके कहने पर खोजा तालाब के किनारे तक आया और सबको सुनाते हुए बोला, भाइयों! इमाम साहब अपनी जिंदगी में सिर्फ दूसरों से लेना जानते हैं। किसी को कुछ देना नहीं जानते।
फिर उसने इमाम की तरफ अपना हाथ बढ़ाया और बोला, इमाम साहब! मेरा हाथ थाम लीजिये मैं आपको बाहर खींच लूंगा। यह सुनते ही इमाम ने लपक कर खोजा का हाथ थाम लिया, फिर उसी का हाथ थामे हुए वह तालाब के किनारे आ लगा।