खोजा गाँव-गाँव में घूमकर लोगों की बीमारियों का इलाज था।
हुनरमंद तो वह था ही, उसकी बताई दवाइयां इतनी सस्ती होती थी कि गरीब से गरीब आदमी भी उन्हें खरीद सकता था।
यही नहीं खोजा अक्सर दवाई का नाम या कोई ऐसी जड़ी-बूटी खाने की सलाह देता था जो आसानी से कहीं भी किसी भी मुल्क में मिल सकती थी।
कई बार खोजा मरीजों को बिना दवाई के ही ठीक कर देता था।
दरसल वह मरीज को देखते ही जान जाता था कि वह किस बीमारी का शिकार है या ज्यादा मेहनत करने की वजह से,
या कम भोजन मिलने की वजह से उसका शरीर रोगियों जैसा हो गया है।
ऐसे मरीजों को दवाई न देकर आराम करने या पूरी खुराफ़ खाने की सलाह देता था और जाहिर है कि मरीज बिना कोई दवाई खाये तंदुरुस्त हो जाते थे।
खोजा की हकीमी से सस्ती से सस्ती सामग्री से बनी दवाइयों को मंहगे दामों पर बेचने वाले कुछ रईस लोग बेहद नाराज थे।
खोजा जब भी किसी गाँव का चक्कर लगा जाता था, वहां उनकी दवाइयों की बिक्री न के बराबर रह जाती थी।
वे सब लोग खोजा को ठिकाने लगाने की फ़िराक में रहा करते थे।
उनकी दिली इच्छा थी कि खोजा की दवाई खाने से कोई बीमार अल्लाह को प्यारा हो जाए ताकि वे इस बात का ढिंढोरा पीटकर खोजा को बदनाम कर सकें।
यह उनका दुर्भाग्य ही था कि ऐसी नौबत कभी नहीं आई थी।
खोजा की बताई दवाई खाकर भले-चंगे तो बहुत होते देखे गए लेकिन ऐसा कभी देखने में तो दूर, सुनने में भी नहीं आया कि
खोजा की दवाई खाने के बाद कोई अल्लाह को प्यारा हुआ हो अलबत्ता लोग ज्यादा दिन तक अस्वस्थ भी नहीं रहते थे।
आखिर एक रईस ने खुद खोजा को बदनाम करने की योजना बनाई। वह बीमार बनकर खोजा के पास पहुँचा और बोला, खोजा कल रात में जब मैं सो रहा था, तो अचानक एक चूहा मुंह के रास्ते मेरे पेट में चला गया। इसका क्या इलाज है ?
खोजा ताड़ गया कि यह रईस बीमारी का इलाज जानने के लिए नहीं, उसे हैरान करने आया है।
फिर भी खोजा ने उसे इलाज बताने से पहले डपट लगाई, तुम भी कैसे बेवकूफ हो सेठ जी। खैर, आपसे जो मूर्खता हो गयी सो हो गई। वैसे इसका इलाज बड़ा आसान है।
आप अंदर चलकर बिस्तर पर लेट जाओ। जितना संभव हो, मुँह खोलकर लेटना। मैं अभी एक बिल्ली मंगवाता हूँ। वह जरूर तुम्हारे पेट के चूहे को खा जाएगी मेरी समझ से तो आपकी बीमारी का दूसरा कोई इलाज नहीं है।
यह सुनना था कि सेठ एकदम बिस्तर से उठकर खड़ा हो गया और सरपट अपने घर की ओर भाग खड़ा हुआ।