कुसंग का फल

न ह्यविज्ञातशीलस्य प्रदातव्यः प्रतिश्रयः।

अज्ञात या विरोधी प्रवृत्ति के व्यक्ति को आश्रय नहीं देना चाहिए।

एक राजा के शयनगृह में शय्या पर बिछी सफेद चादरों के बीच एक मन्दविसर्पिणी सफेद चूँ रहती थी।

एक दिन इधर-उधर घूमता हुआ एक खटमल वहाँ आ गया। उस खटमल का नाम था अग्निमुख।

अग्निमुख को देखकर दुःखी जूं ने कहा-हे अग्निमुख! तू यहाँ अनुचित स्थान पर आ गया है।

इससे पूर्व कि कोई आकर तुझे देखे, यहाँ से भाग जा।

खटमल बोला-भगवती! घर आए हुए दुष्ट व्यक्ति का भी इतना अनादर नहीं किया जाता, जितना तू मेरा कर रही है।

उससे भी कुशलक्षेम पूछा जाता है। घर बनाकर बैठने वालों का यही धर्म है।

मैंने आज तक अनेक प्रकार का कटु-तिक्त, कषाय-अम्ल रस का खून पिया है; केवल मीठा खून नहीं पिया।

आज इस राजा के मीठे खून का स्वाद लेना चाहता हूँ। तू तो रोज़ ही मीठा खून पीती है।

एक दिन मुझे भी उसका स्वाद लेने दे। बोली-अग्निमुख! मैं राजा के सो

जाने के बाद उसका खून पीती हूं।

तू बड़ा चंचल है, कहीं मुझसे पहले ही तूने खून पीना शुरू कर दिया तो दोनों ही मारे जाएँगे। हाँ, मेरे पीछे रक्तपान करने की प्रतिज्ञा करे तो एक रात भले ही ठहर जा।

खटमल बोला-भगवती! मुझे स्वीकार है।

मैं तब तक रक्त नहीं पीऊंगा, जब तक तू नहीं पी लेगी।

वचन-भंग करूँ तो मुझे देव-गुरू का शाप लगे।

इतने में राजा ने चादर ओढ़ ली। दीपक बुझा दिया।

खटमल बड़ा चंचल था। उसकी जीभ से पानी निकल रहा था। मीठे खून के लालच से उसने नूं के रक्तपान से पहले ही राजा को काट लिया।

जिसका जो स्वभाव हो, वह उपदेशों से नहीं छूटता। अग्नि अपनी जलन और पानी अपनी शीतलता के स्वभाव को कहाँ छोड़ सकता है।

मर्त्य जीव भी अपने स्वभाव के विरुद्ध नहीं जा सकते।

अग्निमुख के पैने दाँतों ने राजा को तड़पाकर उठा दिया। पलंग से नीचे कूदकर राजा ने सन्तरी से कहा-देखो, इस शय्या में खटमल या यूँ अवश्य हैं।

इन्हीं में से किसी ने मुझे काटा है-सन्तरियों ने दीपक जलाकर चादर की तहें देखनी शुरू कर दी।

इस बीच खटमल जल्दी से भागकर पलंग के पायों के जोड़ों में जा छिपा।

मन्दविसर्पिणी जूं चादर की तह में ही छिपी थी।

सन्तरियों ने उसे देखकर पकड़ लिया और मसल डाला।

दमनक शेर से बोला-इसलिए मैं कहता हूँ कि संजीवक को मार दें अन्यथा वह आपको मार देगा, अथवा उसकी संगति से आप जब स्वभावविरुद्ध काम करेंगे, अपनों को छोड़कर परायों को अपनाएँगे, तो आप पर वही आपत्ति आ जाएगी जो चण्डरव पर आई थी।

पिंगलक ने पूछा-कैसे ? दमनक ने कहा-सुनो :