एक गाँव में एक स्त्री रहा करती थी ।
वह स्वभाव से बहुत बहुत गुस्से वाली थी. गुस्सा उसकी नाक पर बैठा रहता था ।
छोटी-छोटे बात पर वह तुनक जाती और लोगों को भला-बुरा कह देती थी ।
आस-पड़ोस में रहने वाले लोग उससे परेशान थे और उससे बात करने से घबराते थे ।
घर कैसे अछूता रहता ? उसका गुस्सा घर पर कलह का कारण बन चुका था ।
उस स्त्री को अहसास था कि गुस्सा उसके लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है ।
अक्सर गुस्सा उतरने के बाद वह पछतावे की आग में जला करती थी ।
लेकिन गुस्सा नियंत्रण के बाहर होने के कारण स्वयं को लाचार पाती ।
एक दिन गाँव में एक महात्मा पधारे. उनकी कीर्ति जब स्त्री के कानों तक पहुँची, तो उसने निश्चय किया कि वह महात्मा जी से मिलकर अपने गुस्से को दूर करने का उपाय पूछेगी ।
वह महात्मा से मिलने पहुँची और प्रमाण कर बोली, “गुरूवर! ।
मैं अपने गुस्से से परेशान हूँ. गुस्से पर काबू ही नहीं रख पाती ।
गुस्से में अक्सर लोगों को भला-बुरा कह जाती हूँ और बाद में पछताती हूँ ।
मेरे गुस्से के कारण सब मुझे नज़र अंदाज़ करने लगे हैं ।
इससे मैं बहुत दु:खी भी हूँ. मुझे कोई ऐसी दवा दीजिये कि मैं गुस्सा करना छोड़ दूं ।
महात्मा ने उसे एक शीशी दी और बोले, “पुत्री, इस शीशी में क्रोध दूर करने की दवा है ।
अबसे जब भी तुम्हें क्रोध आये, इस शीशी से मुँह लगाकर दवा के कुछ घूंट पी लेना ।
स्त्री दवा पाकर बहुत ख़ुश हुई और महात्मा का धन्यवाद कर अपने घर लौट गई ।
उसके बाद उसे जब भी गुस्सा आता, वह शीशी से मुँह लगाकर दवा पी लेती ।
धीरे-धीरे उसका गुस्सा कम होने लगा ।
सात दिन बाद जब शीशी की दवा ख़त्म हो गई, तो वह फिर से महात्मा के पास पहुँची और बोली, “गुरूवर, आपने मुझे गजब की दवा दी है ।
पीते साथ ही गुस्सा छूमंतर हो जाता है ।
अब वह दवा ख़त्म हो गई है. कृपाकर मुझे उस दवा की एक शीशी और दे दीजिये ।
महात्मा मुस्कुराते हुए बोले, “पुत्री, तुम्हें जानकार आश्चर्य होगा कि उस शीशी में कोई दवा नहीं थी ।
उसमें सादा पानी भरा हुआ था।
क्रोध आने पर जब भी तुम उस शीशी से पानी पीती थी, तो शीशी मुँह में होने के कारण तुम कुछ बोल नहीं पाती थी।
क्रोध दूर करने का उपाय बस अपना मुँह बंद कर लेना है. अबसे यही किया करो ।