एक पिता पुत्र साथ-साथ टहलने निकले,
वे दूर खेतों की तरफ निकल आये, तभी पुत्र ने देखा कि रास्ते में, पुराने हो चुके एक जोड़ी जूते उतरे पड़े हैं,
जो संभवतः पास के खेत में काम कर रहे गरीब मजदूर के थे।
पुत्र लक्ष्मी कांत को मजाक सूझा उसने पिता से कहा - क्यों न आज की शाम को थोड़ी शरारत से यादगार बनायें,
आखिर मस्ती ही तो आनन्द का सही स्रोत है।
पिता ने असमंजस से बेटे की ओर देखा।
पुत्र बोला - हम ये जूते कहीं छुपा कर झाड़ियों के पीछे छुप जाएं।
जब वो मजदूर इन्हें यहाँ नहीं पाकर घबराएगा तो बड़ा मजा आएगा।
उसकी तलब देखने लायक होगी, और इसका आनन्द मैं जीवन भर याद रखूंगा।
पिता, पुत्र की बात को सुन गम्भीर हुये और बोले - बेटा !
किसी गरीब और कमजोर के साथ उसकी जरूरत की वस्तु के साथ इस तरह का भद्दा मजाक कभी न करना।
जिन चीजों की तुम्हारी नजरों में कोई कीमत नहीं, वो उस गरीब के लिये बेशकीमती हैं।
तुम्हें ये शाम यादगार ही बनानी है, तो आओ आज हम इन जूतों में कुछ सिक्के डाल दें और छुप कर देखें कि इसका मजदूर पर क्या प्रभाव पड़ता है।
पिता ने ऐसा ही किया और दोनों पास की ऊँची झाड़ियों में छुप गए।
मजदूर जल्द ही अपना काम ख़त्म कर जूतों की जगह पर आ गया।
उसने जैसे ही एक पैर जूते में डाले उसे किसी कठोर चीज का आभास हुआ,
उसने जल्दी से जूते हाथ में लिए और देखा कि अन्दर कुछ सिक्के पड़े थे।
उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और वो सिक्के हाथ में लेकर बड़े गौर से उन्हें देखने लगा।
फिर वह इधर-उधर देखने लगा कि उसका मददगार शख्स कौन है ?
दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आया, तो उसने सिक्के अपनी जेब में डाल लिए।
अब उसने दूसरा जूता उठाया, उसमें भी सिक्के पड़े थे।
मजदूर भाव विभोर हो गया।
वो घुटनो के बल जमीन पर बैठ आसमान की तरफ देख फूट-फूट कर रोने लगा।
वह हाथ जोड़ बोला - हे भगवान् ! आज आप ही किसी रूप में यहाँ आये थे,
समय पर प्राप्त इस सहायता के लिए आपका और आपके माध्यम से जिसने भी ये मदद दी, उसका लाख- लाख धन्यवाद।
आपकी सहायता और दयालुता के कारण आज मेरी बीमार पत्नी को दवा और भूखे बच्चों को रोटी मिल सकेगी।
तुम बहुत दयालु हो प्रभु ! आपका कोटि-कोटि धन्यवाद।
मजदूर की बातें सुन, बेटे की आँखें भर आयीं।
पिता ने पुत्र को सीने से लगाते हुयेे कहा - क्या तुम्हारी मजाक मजे वाली बात से जो आनन्द तुम्हें जीवन भर याद रहता उसकी तुलना में
इस गरीब के आँसू और दिए हुये आशीर्वाद तुम्हें जीवन पर्यंत जो आनन्द देंगे वो उससे कम है, क्या ?
पिताजी.. आज आपसे मुझे जो सीखने को मिला है, उसके आनंद को मैं अपने अंदर तक अनुभव कर रहा हूँ।
अंदर में एक अजीब सा सुकून है।
आज के प्राप्त सुख और आनन्द को मैं जीवन भर नहीं भूलूँगा।
आज मैं उन शब्दों का मतलब समझ गया, जिन्हें मैं पहले कभी नहीं समझ पाया था।
आज तक मैं मजा और मस्ती-मजाक को ही वास्तविक आनन्द समझता था, पर आज मैं समझ गया हूँ कि, लेने की अपेक्षा देना कहीं अधिक आनंददायी है।