गर्मियों के दिन थे।
एक कौआ प्यास से बेहाल था और पानी की तलाश में यहाँ-वहाँ भटक रहा था।
किंतु कई जगहों पर भटकने के बाद भी उसे पानी नहीं मिला।
वह बहुत देर से उड़ रहा था।
लगातार उड़ते रहने के कारण वह बहुत थक कर चूर हो चुका था।
उधर तेज गर्मी में उसकी प्यास बढ़ती जा रही थी।
धीरे-धीरे वह अपना धैर्य खोने लगा।
उसे लगने लगा कि अब उसका अंत समय निकट है।
आज वह अवश्य मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा।
थकान के कारण अब उससे उड़ा नहीं जा रहा था।
कुछ देर आराम करने वह एक मकान की छत पर बैठ गया।
वहाँ उसने देखा कि छत के एक कोने में घड़ा रखा हुआ है।
घड़े में पानी होने की आस में वह उड़कर घड़े के पास गया और उसके अंदर झांक कर देखा।
कौवे ने देखा कि घड़े में पानी तो है, किंतु इतना नीचे है कि उसकी चोंच वहाँ तक नहीं पहुँच सकती थी।
वह उदास हो गया।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे घड़े में रखे पानी तक पहुँचे।
लेकिन फिर उसने सोचा कि उदास होने से काम नहीं चलेगा, कोई उपाय सोचना होगा।
घड़े के ऊपर बैठे-बैठे ही वह उपाय सोचने लगा।
सोचते-सोचते उसकी दृष्टि पास ही पड़े कंकड़ो के ढेर पर पड़ी. फिर क्या था ?
कौवे के दिमाग की घंटी बज गई. उसे एक उपाय सूझ गया।
बिना देर किये वह उड़कर कंकडों के ढेर पर पहुँचा और एक उनमें से एक कंकड़ अपनी चोंच से उठाकर घड़े तक लाकर घड़े में डाल दिया।
वह एक-एक कंकड़ अपनी चोंच से उठाकर घड़े में लाकर डालने लगा।
कंकड़ डालने से घड़े का पानी ऊपर आने लाग।
कुछ देर में ही घड़े का पानी इतना ऊपर आ गया कि कौआ उसमें चोंच डालकर पानी पी सकता था।
कौवे की मेहनत रंग लाई थी और वह पानी पीकर तृप्त हो गया।
सीख ( Moral Of The Pyasa Kauwa Story )“चाहे समय कितना ही कठिन क्यों न हो, धैर्य से काम लेना चाहिए और उस कठिनाई से निकलने के लिए बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए। धैर्य और बुद्धि से हर समस्या का निवारण संभव है. “।