एक पिता और पुत्र मंदिर गए।
मंदिर के प्रवेश द्वार पर शेर की मुर्तिया बनी हुई थी।
“पिताजी, भागो यहां से, ये शेर हम दोनों को खा जायेंगे।”, बेटा चिल्लाया।
पिता ने बेटे को शांत करते हुए कहा, “डरो मत बेटा, ये केवल मुर्तिया हैं।
हमे नुकसान नहीं पहुचायेगी।”
बेटे ने जवाब दिया, “यदि शेर की मूर्तिया नुकसान नहीं पहुचायेगी तो भगवान् की मुर्तिया हमे कैसे आर्शीवाद दे सकती हैं।”बेटे की इस बात ने पिता को अंदर तक झकझोर दिया।
पिता ने डायरी में लिखा, “में अभी भी अपने बच्चे के जवाब पर निःशब्द हूँ।
मैंने ईश्वर को मूर्तियों के बजाय मनुष्यो में खोजना शुरू कर दिया।
मुझे ईश्वर तो नहीं मिले, लेकिन मुझे मानवता मिल चुकी थी।“