वचन की समाप्ति के बाद भगवान् गौतम बुद्ध के पास कई लोग आते
थे और अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करते थे।
एक दिन एक ग्रामीण गौतम बुद्ध के पास आया और बोला, "भगवन्! आप कई वर्षों से
शांति, सत्य और मोक्ष की बात लोगों को समझा रहे हैं, किंतु अब तक कितने लोगों को मोक्ष मिला है?''
बुद्ध ने कहा, “तुम कल आना, तब मैं तुम्हारी बात का उत्तर दूँगा, किंतु आने से पहले एक काम करना,
पूरे गाँव का चक्कर लगाते हुए सभी लोगों से पूछकर आना कि कौन-कौन शांति चाहते हैं
और कौन-कौन सत्य एवं मोक्ष।"
अगले दिन उस ग्रामीण ने घंटों गाँव का चक्कर लगाया, किंतु उसे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला,
जो शांति, सत्य और मोक्ष चाहता हो। कोई धन चाहता था तो कोई यश।
किसी को संतान चाहिए थी तो किसी को दीर्घायु।
ग्रामीण बुद्ध के पास आकर बोला, “यह विचित्र गाँव है भगवन्।
कोई कुछ चाहता तो कोई कुछ, लेकिन शांति, सत्य और मोक्ष चाहनेवाला कोई नहीं है।"
तब बुद्ध ने उत्तर दिया, “इसमें विचित्र कुछ नहीं है।
हममें से प्राय: सभी सुख चाहते हैं, शांति नहीं।
सुख प्राप्ति के लिए वे शांति के विपरीत मार्ग पर चलते हैं, इसलिए वे सुख और शांति का मार्ग नहीं पा सकते।"
सार यह है कि व्यक्ति सुख की खोज भौतिकता में करता है,
जो निरंतर लिप्सा को बढ़ाती है और लिप्सा कभी शांति नहीं आने देती।
शांति का मार्ग संतोष और सीमित चाह में निहित होता है तथा शांति ही सही मायनों में सुख का वाहक है,
क्योंकि सुख शरीर से बढ़कर आत्मा का विषय है।